आचार्यश्री के लाडले आदिवासी अंचल के मूल निवासियों की गुरुभक्ति


परमपूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के दर्शन करने जगदलपुर बस्तर सेआए डिंडोरी आलेख महिमा समाज के संत वासुदेव जो कि वस्त्र नहीं पहनते हैं पेड़ की छाल पहनते हैं और कपड़े के उपर नहीं बैठते हैं

अलेख महिमा समाजकी विशेषता है की इस समाज के अनुयायी ज़ो की मूलत: आदिवासी होते है सत्विक होते है कंदमूल का सेवन नहीं करते है
सबसे बड़ी बात रात्री भोजन नहीं करते रात्री जल के त्यागी होते हैं
इसके अनुयायी माहिला एवं पुरूष गेरुआ वस्त्र पहनते है
स्थानिय भाषा मे इन्हे कुम्बुचिया अथवा बुचिया समाज कहा जाता है

यह समाज बस्तर एवं सीमावर्ती ओडिशा राज्य मे फैला हुआ है

जगदलपुर प्रवास

आचार्यश्री के सन 2013 के जगदलपुर प्रवास पर गुरूजी को इनके बारे मे जब पता चला तब से हमारे करूणा सागर आचार्य श्री विद्या सागर जी की करूणा दृष्टी इस समाज पर थी और ऐसे सत्विक समाज के ऊत्थान के लिए सत्विक रोजगार ज़रूरी था एेसे मे जगदलपुर हथकारघा केन्द्र की स्थापना से बेहतर क्या हो सकता है ..आचार्य श्री का यह वात्सल्य आशिर्वाद साकार हुआ जगदलपुर हथकारघा केन्द्र के रुप मे .. जो आज सफलता के नए आयाम स्थापित कर रहा है एवं सत्विक लोगो को सत्विक रोजगार प्रदान कर रहा हैं

समाचार सौजन्य
वैभव जैन सम्यक्
जगदलपुर


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