जीना क्या जीवन से हार के, पतझड़ के बाद आते हैं दिन बहार के: मुनि श्री आदित्य सागर


इंदौर। श्रुत संवेगी मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज ने आज दिगंबर जैन मंदिर राजेंद्र नगर में धर्म सभा को संबोधित करते हुए ढोंग का नहीं ढंग का उपशम भाव से और प्रसन्नता पूर्वक जीवन जीने की प्रेरणा दी। मुनि श्री ने कहा कि समय, संपत्ति और शब्द सभी के पास हैं लेकिन उसका सही उपयोग नहीं कर पाने के कारण आज मानव दुखी है। संपत्ति विपत्ति है यदि उसका सदुपयोग नहीं कर पाए तो, आपने कहा कि असमय मत बोलो, असमय कहे गए शब्द निष्फल हो जाएंगे और कार्यकारी भी नहीं होंगे। परिस्थिति कैसी भी हो जीवन से हार ना माने, धैर्य रखें और यह स्मरणभी रखें कि सब दिन एक से नहीं होते आपने कहा कि जीना क्या जीवन से हार के पतझड़ के बाद आते हैं दिन बहार के।

किसी के द्वारा गाली देने पर भी क्रोध न करें, असमय ना बोलें, जब भी बोलें हित मित और सत्य वचन बोलें, व्यवस्थित रहें और अपने भावों को भी व्यवस्थित रखें। मुनि श्री ने आजकल संतों में पनप रही इस विकृत सोच पर भी टिप्पणी की कि साधु संत मंदिरों मैं प्रदर्शित दूसरे संघ के आचार्यों के चित्र, उनके द्वारा लिखे शास्त्र मंदिर से हटाने की प्रेरणा देते हैं जो सही नहीं है समाज को ऐसे संतो से स्पष्ट कह देना चाहिए कि जिस आचार्य के चित्र को आप हटाना चाहते हैं वह चित्र आचार्य के कहने से नहीं बल्कि श्रावकों ने आचार्य के प्रति अपनी श्रद्धा ,भक्ति और स्वप्रेरणा से लगाया है। हम मंदिर से चित्र हटा भी देंगे लेकिन आप हमारे चित्त से कैसे हटा पाएंगे।

प्रारंभ में समाज के अध्यक्ष श्री कैलाश पाटनी, प्रदीप बड़जात्या आनंद जैन और अनिल जैन ने आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन किया सभा का संचालन दीपक पाटनी ने किया।

— डॉक्टर जैनेंद्र जैन


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