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बाहुबली महामस्तिकाभिषेक: सौभाग्य बुला रहा है!

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बाहुबली महामस्तिकाभिषेक: सौभाग्य बुला रहा है!

(‘सौभाग्य आपको बुला रहा है’, 12 वर्ष का लंबा इंतजार, बस अब चंद दिनों का मेहमान है। फरवरी 2018 में जैन समुदाय को गोमटेश्वर बाहुबली जी के महामस्तिकाभिषेक का पुण्यदायी मौका कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में मिलने जा रहा है। ऐसा अनुमान है  इस उत्सव मेें देश-विदेश से 80 लाख से अधिक श्रद्धालु भाग लेगे। इसकी तैयारियां बडे़ ही युद्ध स्तर पर अंतिम पड़ाव पर हैं। श्रवणबेलगोला, बाहुबली और महामस्तिकाभिषेक की पूरी जानकारी अपने प्रासंगिक आलेख में दे रहे हैं श्रवणबेलगोला से हाल ही में लौटकर आये डाॅ. सुनील जैन संचय ललितपुर…।)

गोमटेश्वर बाहुबली श्रवणवेलगोला के महामस्तिकाभिषेक फरवरी 2018 के अवसर पर विशेष आलेख

कर्नाटक प्रान्त के हासन जिले में विश्व प्रसिद्ध गोमटेश्वर बाहुबली की 57 फुंट उत्तंग प्रतिमा का प्रत्येक बारह वर्ष में होने वाला महामस्तिकाभिषेक के अब चंद दिन बाकी हैं, यह महामहोत्सव फरवरी में 17 से 25 तक होगा। सभी इस उत्सव के साक्षी बनना चाहते हैं। केन्द्र व राज्य सरकार भी इस उत्सव को महामहोत्सव के रूप में मनाने के लिए पूरी तत्परता दिखा रही है।

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श्रवणबेलगोला जैनों का अति प्राचीन और परम पावन तीर्थ है। जैन इतिहास में इसका विशिष्ट स्थान है। उत्तरवासी इसे जैनवद्री कहते हैं। एक हजार साल से भी अधिक वर्ष पूर्व चामुण्डराय ने आचार्य श्री नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती के सान्निध्य में विन्द्रगिरी पर्वत पर भगवान बाहुबली की प्रतिमा प्रतिष्ठित कराई थी। यह मूर्ति 57 फुट ऊंची उत्तरमुखी, खड़गासन , संसार की अनुपम अद्वितीय एवं अतिशय सम्पन्न विशाल प्रतिमा है। जिसे दुनिया का आठवां आश्चर्य के नाम से भी जाना जाता है। इस भव्य, दिव्य, मनोरम, दर्शनीय , अलौकिक प्रतिमा का 12 सालों के अंतराल में  महामस्तिकाभिषेक होता है। श्रवणबेलगोला में स्थित इस प्रतिमा का निर्माण 10वीं शताब्दी में किया गया था। महामस्तिकाभिषेक में लगभग सभी काल के तत्कालीन राजाओं और महाराजाओं ने भाग लिया है और अपनी अहम भूमिका भी निभायी है। वर्तमान में भी प्रधानमंत्री और राष्ट्पति इस आयोजन में अपना अघ्र्य समर्पित करने श्रवणबेलगोला पहुंचते रहे हैं। पंडित जवाहर लाल नेहरू जी जब देश के प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने भी श्रवणबेलगोला का दौरा  श्रीमती इन्दिरा गांधी जी के साथ किया था। गोमटेश्वर बाहुबली की प्रतिमा को देखते हुए उन्होंने कहा था कि इसे देखने के लिए आपको मस्तक झुकाना नहीं पड़ता है, मस्तक खुद-ब-खुद झुक जाता है। प्रथम राष्ट्पति डा राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी आत्मकथा में , शंकर दयाल शर्मा, डा ए0पी0 जे0 अब्दुल कलाम आदि ने बाहुबली के चरणों में पहुंचकर अपने श्रद्धा सुमन समर्पित किये हैं।

श्रवणबेलगोला की ऐतिहासिकता और आध्यात्मिकता:

 श्रवणबेलगोला की ऐतिहासिकता और आध्यात्मिकता अनूठी है, जो सभी को अपनी ओर आकर्षित करती है। अगर किसी व्यक्ति को इतिहास में दिलचस्पी है तो श्रवणबेलगोला उसकी चाहत को और अधिक बढ़ा सकता है। श्रवणबेलगोला में जहां गोमटेश्वर बाहुबली भगवान की विश्व प्रसिद्ध प्रतिमा है, जो जैन समुदाय की आस्था का केन्द्र तो है ही साथ ही दूसरे लोगों के लिए भी एक शिला खण्ड पर उकेरी गयी यह विशाल प्रतिमा आकर्षण का केन्द्र है, देश-विदेश के हजारों लोग जब इस प्रतिमा को देखते हैं तो देखते ही रह जाते हैं। यहां  चंद्रगिरी पर्वत पर मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य और उनके गुरू भद्रबाहु स्वामी की समाधि और प्राचीन गुफा भी है। दरअसल, नंद वंश का विनाश कर चंद्रगुप्त ने चाणक्य की सहायता से मौर्य वंश की स्थापना लगभग 320 ईसा पूर्व में की थी।

अपने 22 वर्ष के शासन के बाद उन्होने अपना साम्राज्य पुत्र बिन्दुसार को सौप दिया और जैन संत भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला आ गए। यहां आकर तपस्या करते हुए उन्होंने समाधि पूर्वक देह त्याग किया। उन दोनों की याद में मंदिर का निर्माण आज से लगभग 2300 साल पहले किया गया था जो आज भी अपनी सम्पूर्ण उपस्थिति दर्ज करा रहा है। इसके अलावा महान सम्राट अशोक जो चंद्रगुप्त मौर्य के पौत्र थे, उन्होंने भी जब श्रवणबेलगोला की यात्रा की तो अपने दादा की याद में एक मंदिर का निर्माण कराया। अब भी वह मंदिर मौजूद है। इन सबके अलावा काफी संख्या में शिलालेख और स्तंभलेख यहां मौजूद हैं जो अमूमन 9वी्र से 12वीं शताब्दी के हैं। यहां लगभग 580 शिलालेख जैनों की गौरव गाथा का उल्लेख करते हैं। पूज्य जगतगुरू स्वस्ति श्री चारूकीर्ति जी स्वामी का निवास जैन मठ में है।

विन्ध्यगिरी पर्वत समुद्र तल से 3500 फीट ऊंचा है। तलहटी में कल्याणी सरोवर के निकट से 644 सीढियां हैं। चंद्रगिरी पर्वत समुद्र तल से 3100 फीट ऊंचा तथा नीचे के मैदान से 175 फीट की ऊंचाई पर है। चढ़ने की सीढ़ियां 200 हैं। शिलालेखों से विदित होता है कि ईसा पूर्व की तीसरी शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक यह क्षेत्र अनेक जैन साधकों की साधना एवं मोक्ष स्थली रहा है। गंग और होयसल वंश के राजाओं ने जैन धर्म के विभिन्न तीर्थंकरों के लिए यहां कई मंदिरों का निर्माण कराया था, जो आज भी अपनी दर्शनीय छठा से सभी के लिए आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। श्रवणबेलगोला के दोनों ओर दो मनोहर पर्वत विन्ध्यगिरी और चंद्रगिरी को देखकर मन हर्षित हो उठता है, दोनों पर्वतों की ऐतिहासिकता और रमणीयता देखकर हद्रय प्रफुल्लित हो उठता है।

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श्रवणबेलगोला तीर्थ क्यों है प्रसिद्ध:

 श्रवणबेलगोल शब्द श्रवण़ बेल़ गोला, इन तीन शब्दों के संयोग से बना है। श्रवण-श्रमण, बेल-श्वेत, उज्जवल, गोल-सरोवर अर्थात् जैन साधुाओं का धवल सरोवर। भगवान बाहुबली की इतनी विशाल प्रतिमा जो विन्ध्यगिरी पर्वत  को काटकर बनायी गयी है, कही दूसरी जगह देखने नहीं मिलती है। इसका निर्माण वर्ष 981 में हुआ था। उस समय कर्नाटक में गंग वंश का शासन था, गंग के सेनापति चामुंडराय ने इसका निर्माण कराया था। विन्ध्यगिरी के सामने ही चंद्रगिरी पर्वत है। इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि चंद्रगिरी का नाम मगध में मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य के नाम पर पड़ा है। भगवान बाहुबली की यह मूर्ति सफेद ग्रेनाइट के एक ही पत्थर से काटकर बनाया गयी है। मूर्ति एक कमल पर खड़ी है। यह जांघों तक बिना किसी सहारे के खड़ी है। विन्ध्यगिरी पर स्थित यह मूर्ति 30 किलोमीटर दूर से भी दिखाई देती है। इस प्रतिमा के बारे में मान्यता है कि इस मूर्ति में शक्ति, साधुत्व, बल तथा उदारवादी भावनाओं का अद्भुत प्रदर्शन होता है।

आखिर कौन थे भगवान बाहुबली:

 भगवान बाहुबली  असि, मसि, कृषि, शिल्प , विद्या, वाणिज्य इन षड् विद्याओं के प्रणेता जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र थे। इनके दूसरे पुत्र का नाम था भरत, अनेक तथ्यों और प्रमाणों से सिद्ध हुआ है कि इन्हीं भरत के नाम से हमारे देश का नाम भारत पड़ा था। राज्य सत्ता के लिए भरत और बाहुबली दोनों भाईयों में अहिंसक युद्ध हुआ। बाहुबली की विजय हुई परंतु उन्होंने सम्पूर्ण राज्य अपने भाई भरत को सौप दिया तथा स्वयं संन्यास धारण कर तप करके मोक्ष को प्राप्त किया। जैनधर्म में भगवान बाहुबली को प्रथम मोक्षगामी माना जाता है। भगवान बाहुबली ने इंसान के आध्यात्मिक उत्थान, मानसिक शांति और सुखमय जीवन के लिए अहिंसा से सुख, त्याग से शांति, मैत्री से प्रगति और ध्यान से सिद्धि का पावन संदेश दिया। उन्होंने सम्पूर्ण राज-पाट त्यागकर संदेश दिया कि यह वसुधा किसी की नहीं हुयी है। अन्ततः सबको छोड़ना ही पड़ती है।

तैयारी आस्था के महामस्तकाभिषेक की:

 12 वर्ष के अंतराल में होने वाले भगवान बाहुबली के 17 से 25 फरवरी 2018 तक महामस्तिकाभिषेक की तैयारियां लगभग पूरी कर ली गयी हैं। इस प्रसंग पर श्रवणबेलगोला में अनेक राष्ट्ीय सम्मेलनों के आयोेजनों से  देश-विदेश में इस महा आयोजन की गंूज सुनायी दे रही है। इन दिनों चारों ओर जैन समुदाय में एक ही सूत्र वाक्य गुन्जायमान हो रहा है-‘सौभाग्य आपको बुला रहा है।‘  आयोजन को सफल बनाने के लिए केन्द्र सरकार और राज्य सरकार भी पूरी मुस्तैदी के साथ जुटी हुयी है। महामस्तिकाभिषेक के लिए इस बार जर्मन तकनीक से चार मंजिला मंच 12करोड़ की लागत से बनाया  है। जिसका मैने खुद श्रवणबेलगोला की यात्रा पर जायजा लिया। दो लिप्ट लगायी गयी हैं। एक समय में 30 हजार लोगों के लिए आवास व्यवस्था का समुचित प्रबंध किया गया है।दो लाख से अधिक लोगों के चंद्रगिरी पर्वत पर दर्शन व्यवस्था की गई है। पहाडी पर एल ई डी स्क्रीन और दूरबीन की व्यवस्था भी रहेगी। आयोजन की व्यवस्थाओं के अंजाम देने के लिए 36 समितिया बनाई गयी हैं। महामस्तिकाभिषेक में देश-विदेश से 80 लाख से अधिक लोगों के पधारने की उम्मीद है। पहले 20 दिनों में 35 लाख और बाद में 6 महीनों में करीब 45 लाख लोग आयेंगे।

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चप्पे-चप्पे पर होगी सुरक्षा व्यवस्था:

महामस्तिकाभिषेक  की सुरक्षा व्यवस्था  चाक-चैबंद रहेगी। राज्य सरकार की ओर से इसके लिए विशेष व्यवस्था की गई है। 8 हजार सुरक्षा कर्मियों की तैनाती इस दौरान रहेगी, जो पूरे महोत्सव की सुरक्षा व्यवस्था में जुटे रहेगे।

भोजन-आवास का समुचित प्रबंध:

 प्रतिदिन एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं के सुस्वादु भोजन की व्यवस्था 17 भोजनशालाओं के माध्यम से की जायेगी। अलग-अलग राज्यों के स्वादानुसार भोजन व नाश्ते की शानदार व्यवस्था रहेगी। सभी को निशुल्क भोजन रहेगा। आवास के लिए 11 नगर बसाये गये हैं। सभी के लिए अलग-अलग व्यवस्था रहेगी। एक साथ 30 हजार लोग रूक सकेंगंे। 80 फीट का रोड, सारी सुविधाएं-लेट बाथ आदि आधुनिकतम समस्त सुविधाएं कांटेज में दी जावेगी। सभी के लिए सर्वसुविधायुक्त आवास की समुचित व्यवस्थाएं की गई हैं।

होगा संतों का महासंगम:

इस विशाल आयोजन में जैन संतों का महासंगम भी देखने को मिलेगा। जहां परम पूज्य आचार्य श्री वर्द्धमानसागर जी महाराज ससंघ महामस्तिकाभिषेक में तीसरी बार अपना सान्निध्य प्रदान करने श्रवणबेलगोला पहुंच गये हैं वहीं 185 साधु-संत भी इस आयोजन के लिए पहुंच चुके हैं। बताया गया है इस आयोजन में 30 जैनाचार्यों के साथ 400 पिच्छीधारी जैन साधुओं व हजारों त्यागीजनों के सम्मलित होने की संभावना है। महोत्सव स्थल पर त्यागी नगर का निर्माण भी हो चुका है। सम्पूर्ण देश से दिगम्बर जैन साधु सैकड़ों किलोमीटर का पद विहार कर श्रवणबेलगोला महामस्तिकाभिषेक का साक्षी बनने के लिए पहुंच रहे हैं।

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ऐसे पहुंचे श्रवणबेलगोला:

यह तीर्थ कर्नाटक राज्य के हासन जिले के चेनरायपटटन तहसील के अंतर्गत आता है। श्रवणबेलगोला बेंगलोर से 140 किलोमीटर, मैसूर से 89 किलोमीटर, हासन से 50 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। नजदीकी एयरपोर्ट बैंगलूर है। दिल्ली से बेंगलूर 2 घंटे 50 मिनट की उडान के बाद पहुंचेगे। टे्न के माध्यम से भी पहुंचा जा सकता है। महामस्तिकाभिषेक को ध्यान में रखते हुए अब यशंवतपुर से श्रवणबेलगोला के लिए ट्ेन सुविधा भी चालू हो गयी है। जिसका लाभ भी ले सकते हैं। बैंगलूर से बस और कैब से भी श्रवणबेलगोला पहुंचा जा सकता है।

ऐसे होगा महामस्तिकाभिषेक:

 गोमटेश्वर बाहुबली भगवान का 17 से 26 फरवरी 2018 तक जो विशेष अभिषेक होगा , जिसके लिए कलशों की बुंिकग चल रही है। प्रतिदिन 1008 शुद्ध जल से भरित कलशों से अभिषेक होगा। कुल 9 दिनों तक महामस्तिकाभिषेक में नारियल पानी, गन्ने का रस, दूध, श्रीगंध-चंदन, अष्टगंध, पुष्पवृष्टि आदि से महामस्तिकाभिषेक संपन्न होगा, जिसकी साक्षी लाखों आंखें बनने को आतुर हैं। महामस्तिकाभिषेक में कलश बुकिंग के लिए दी गयी राशि पर 80 जी के तहत आयकर में छूट पा सकते हैं।

अन्य लोगों के लिए भी  है आकर्षण का केन्द्र:

 आस्था के इस महामस्तिकाभिषेक का महत्व केवल जैन समुदाय तक सीमित नहीं है बल्कि जैनेतर समुदाय के लिए भी यह महामहोत्सव आकर्षण का केन्द्र रहता है, यही वजह है कि इसे देखने के लिए हजारों की संख्या में जैनेतर समुदाय भी उमड़ पड़ता है। बाहुबली की विशाल ऐतिहासिक और आध्यात्मिक प्रतिमा, चंद्रगिरी पर चंद्रगुप्त मौर्य और भद्रबाहु की समाधि और प्राचीन गुफाएं ऐसी जगहे हैं जो अन्य समुदाय के लोगों के लिए भी  खूब आकर्षित करते हैं।

देश-विदेश की मीडिया का होगा जमावडा:

 इस महामहोत्सव की कवरेज के लिए विदेशों से भी मीडिया का जमावड़ा बड़ी संख्या में देखा जाता है, यही वजह है इस बार आयोजन समिति ने पत्रकार नगर बनाया है जिसमें एक हजार मीडिया कर्मियों के लिए आवास-भोजन की व्यवस्था रहेगी।

राजनैतिक हस्तियां भी बनेगी महोत्सव की साक्षी:

 भगवान बाहुबली की इस अद्भुत, अलौकिक प्रतिमा के 12 बर्ष के अंतराल में होने जा रहे महामस्तिकाभिषेक के महामहोत्सव का साक्षी आखिर कौन नहीं बनना चाहेगा। प्रत्येक महामस्तिकाभिषेक में प्रधानमंत्री, राष्ट्पति के आने की परंपरा रही है। 2006 में आयोजित महामस्तिकाभिषेक का उदघाटन जहां तत्कालीन राष्ट्पति डा0 अब्दुल कलाम ने किया था तथा उपराष्ट्पति भेरोसिंह शेखावत भी अपना अघ्र्य समर्पित करने पहुंचे थे, तो इस बार भी महामहिम राष्ट्पति रामनाथ कोविंद जी को आयोजन समिति आमंत्रण पत्र सौप चुकी है। राष्ट्पति, प्रधानमंत्री समेत तमाम राजनैतिक हस्तियां इस आयोजन की साक्षी बनेंगी। पूर्व प्रधानमंत्री श्री एच डी देवगौडा व कर्नाटक के मुख्यमंत्री स्वयं उपस्थित होकर पूरे आयोजन पर सीधी नजर बनाये हुए हैं।

सुख-शांति का कारण बनें महामस्तिकाभिषेक:

महामस्तिकाभिषेक में तीसरी बार सान्निध्य प्रदान कर रहे वात्सल्य वारिधि, परम पूज्य आचार्य श्री वर्द्धमानसागर जी महाराज का कहना है कि ‘अहिंसा से सुख और त्याग से शांति’ भगवान बाहुबली के इस परम संदेश से समग्र विश्व का वातावरण परिवर्तित हो सकता है। हर बार की तरह 2018 के फरवरी माह में सम्पन्न होने वाला महामस्तिकाभिषेक महोत्सव सम्पूर्ण जगत के लिए सुख-शांति और उन्नति का कारण बनें।

शांति की राह दिखाते हैं भगवान बाहुबली: 

महामस्तिकाभिषेक का यह पूरा आयोजन श्रवणबेलगोला के भट्टारक, जगतपूज्य स्वस्ति श्री चारूकीर्ति जी स्वामी के नेतृत्व में उन्हीं की देख-रेख में संपन्न हो रहा है। इस आयोजन के बारे में उन्होंने कहा है कि गोमटेश्वर बाहुबली की प्रतिमा विशाल, विलक्षण और अद्भुत है। हमें यह प्रतिमा शांति की राह दिखाती है। भगवान बाहुबली के वचनों को यदि लोग आत्मसात कर लें तो पूरी दुनिया में शांति स्थापित हो जाएगी। आज के अशांत वातावरण में भगवान बाहुबली हमें शांति के पथ पर चलने की प्रेरणा देते हैं।

तो चलें, हम भी ऐसे महामहोत्सव के साक्षी बनने के लिए तैयार हो जाय। महामस्तकाभिषेक के अलौकिक क्षण का साक्षी बन श्रवणबेलगोला  विश्वतीर्थ पर आयोजित इस अनुपम आयोजन में अपनी श्रद्धा का अघ्र्य समर्पित करें।

‘विसट्ट-कंदोट्ट-दलाणुयां, सुलोयणं चंद-समाण-तुण्डं।

घोणाजियं चम्पय-पुप्फसोहं, तं गोमटेसं पणमामि णिच्चं।।

-डाॅ. सुनील जैन ‘संचय’

 


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