बांसवाड़ा। आचार्य श्री पुलक सागर जी महाराज ने कहा जीवन मे सन्यास आ जाये और उस सन्यास का अहंकार हो जाए तो भगवान महावीर कहते है कि ऐसा सन्यास तुम्हारे आत्मकल्याण में कभी सार्थक नही होगा। जहां संकल्प विकल्प न रहे वही तो आकिंचन धर्म होता है। लोग सब कुछ पा लेते है और सब कुछ पाने के अहंकार की चादर ओढ़ भी ओढ़ लेते है। अहंकार से भर जाते है तो वह सब कुछ पाकर भी खाली हाथ ही रहता है।
आचार्य ने कहा मैं त्यागी हु,मैं सन्त हु, मैं सन्यासी हु मुझसे बड़ा त्यागी दुनिया में कोई नही अरे जब त्याग ही कर रहे हो तो अहंकार में क्यो अकड़ जाते हो। आचार्य ने कहा कोन किसका पालनहार है, तुम क्या सोचते हो कि तुन किसी को पाल रहे हो, यह दुनिया, यह समाज, यह घर तुम्हारे बलबूते पर चल रहा है। जो जीव इस दुनिया में आता है वह अपना पुण्य लेकर आता है तुम किसी को क्या पालोगे। एक छिपकली सोचती है कि यह मैं न रहु तो यह छत गिर जायेगी, इस तरह की सोच में जीवन में मत जिओ।
— अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी