संतुष्टि और संयमित जीवनचर्या ही है सुख का मूल मंत्र : मुनि श्री विश्रांतसागर जी महाराज


राजस्थान के बूंदी नगर के देवपुरा जैन मंदिर में मुनि श्री विश्रांतसागर जी महाराज ने एक धर्मसभा को संबोधित करते हुए कि हमें उपलब्ध सुख-सुविधाओं में अपना जीवन-यापन करना चाहिए और इसका दुरुपयोग कतई नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिसके पास धन-दौलत है, उसे दान देकर अच्छे कायरे में उसका सदुपयोग करना चाहिए, अन्यथा वह धन नियम से नष्ट हो जाएगा। उन्होंने ये भी कहा कि ये शरीर तो भिखारी है, इसे जितना दोगे, उतनी ही मांग और करता रहेगा। अपने शरीर को जितने ज्यादा संसंधनों से परिपूर्ण रखोंगे, उतनी ही उसकी चाहत और बढ़ेगी और चाहत बढ़ेगी तो असंतोष बढ़ेगा और असंतोष बढ़ेगा तो दुख बढ़ेगा। इस दुख को नष्ट करना है तो संयमित जीवनचर्या को अपनाना होगा। इस नर शरीर को चमकाने के बजाय अमृत्वप्राप्त आत्मा को चमकाने का प्रयास करो क्योंकि यदि आत्मा शुद्ध और पवित्र रहेगी तो मनुष्य भी खुश और संतोषी रहेगा। धर्मसभा का शुभारम्भ मंगलाचरण के बाद किया गया। आयोजन में पंचकल्याण महोत्सव समिति के अध्यक्ष ज्ञानचंद्र कोटिया, अशोक कोटिया, ओमप्रकाश ठग, प्रदीप हरसौरा, पवन जैन आदि मौजूद थे।


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