सागर। अक्षय तृतीया श्रमण संस्कृति के इतिहास की महत्वपूर्ण तिथि है। इसलिए हमने आज से दान देना सीखा है जिस स्थिति में हम दान करते हैं वह तिथि अक्षय बन जाती है। बुंदेलखंड के लोग रहते सादगी से हैं लेकिन दान देने में बहुत दिलेर हैं। जितना कमाते हैं उसका आधा तक दान दे देते हैं। देश के लोगों को बुंदेलखंड के लोगों से प्रेरणा लेना चाहिए। यह बात मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज ने भाग्योदय तीर्थ से लाइव प्रवचन के दौरान अक्षय तृतीया पर्व पर कही। मुनिश्री ने कहा कि भगवान ऋषभदेव ने 6 माह का तप किया था और फिर 6 माह तक उन्हें विधि नहीं मिली थी।
इसलिए उनके आहार नहीं हुए थे क्योंकि लोग विधि जानते नहीं थे और वे अयोध्या से बिहार कर हस्तिनापुर पहुंचे। जहां राजा श्रेयांश को सपना आया उन्हें विधि का स्मरण हुआ और अपने भाई राजा सोम के साथ प्रथम बार प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ को आहार देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसे लोग पारणा कहते है। मुनि श्री ने कहा पूर्व में दिए गए दान के संस्कार सुरक्षित और शुद्ध भाव से दिए गए दान का संस्कार जन्मो जन्मो तक बना रहता है। ऐसा आदि पुराण और हरिवंश पुराण में लिखा हुआ है। आदि पुराण में तो लिखा है उस समय चक्रवर्ती को चक्रवर्तीपना तुच्छ लगने लगा था। जब राजा श्रेयांश से उन्होंने कहा था आज तुम हमें पूज्य हो गए। भगवान की तरह। उन्हें दान तीर्थंकर की उपमा दी। दान की प्रवृत्ति के रूप में देखता हूं। यह सौभाग्य साधुओं को नहीं यह गृहस्थों को मिला है। पहले दान तीर्थ बाद में धर्म की तीर्थ का उल्लेख है। दान तीर्थ की परंपरा बनी रहेगी तब तक धर्म तीर्थ बना रहेगा दान तीर्थ परंपरा जब कम होगी तो धर्म तीर्थ भी कम होगा। दान की प्रवृत्ति को कभी कम ना होने दें।
बाहर लोग कहते हैं चौका कौन लगाएगा लेकिन बुंदेलखंड में लोग कहते हैं आहार किसके यहां हुए : मुनि श्री ने कहा कि वर्तमान परिस्थिति में पात्र दान चौका शुद्ध बना रहेगा, तब तक यह परिपाटी रहेगी। बाहर लोग कहते हैं चौका कौन लगाएगा लेकिन बुंदेलखंड में लोग कहते हैं आहार किसके यहां हुए पात्र दान तुम्हारा धर्म है। आपको अपने जीवन में कृतार्थ करने का यह शुभ अवसर है। दूसरे दानों में लोगों का रुझान जल्दी और खूब दिखता है लेकिन आहार दान के लिए विधिपूर्वक देने वाले कम है।
इस त्रासदी में अरबों की संपत्ति का मालिक चला गया अब भोगने वाला कोई नहीं, ऐसी सम्पत्ति किस काम की : मुनिश्री ने कहा अपने द्वारा अर्जित रकम का एक हिस्सा दान में लगाना चाहिए। दान देने से धन बढ़ता है। यह अवधारणा ठीक नहीं है। जीवन धन्य बने इसके लिए दान दो व जीवन कृतार्थ बने। धन किसी के साथ नहीं गया। मनुष्य अपना अंबार लगाता है लेकिन जब प्राण निकलते हैं सब यहीं रखा रहता है ।
— अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी