बुजुर्ग हमारी धरोहर : राष्ट्र संत आचार्य श्री ज्ञानसागर

बुजुर्ग परिवार की शान - आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज

बुजुर्ग हमारे घर व परिवार की शान हैं – ललितपुर नगर के स्टेशन रोड स्थित क्षेत्रपाल जैन अतिशय क्षेत्र में राष्ट्र संत आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के रविवारीय मार्मिक प्रवचन सुन श्रोतागण भाव-विभोर हो उठे। धर्मसभा को संबोधित करते हुए सराकोद्धारक संत आचार्य श्री ज्ञानसागर जी ने कहा कि हमारे बुजुर्ग हमारे घर व परिवार की शान हैं। जिस घर में बड़े बुजुर्गों को मान दिया जाता है वह घर भरपूर और कुशल रहता है। बुजुर्गों के आशीर्वाद से हमारे काम सफल होते हैं और हम उन्नति करते हैं। बुजुर्ग हमारे घर की बुनियाद हैं। यदि बुनियाद सकुशल होगी तो ईमारत को बल और लाभ प्राप्त होगा।

उन्होंने कहा कि माता पिता बच्चों का पालन पोषण करते हैं। बच्चों की खुशी के लिए वे अपना सर्वस्व अर्पण करते हैं। बच्चे उनकी आँखों के तारे होते हैं। बुजुर्ग अपने बच्चों के लिए ऊँचे- ऊँचे अरमान रखते हैं और सपने सजाते हैं। वे अपना- आराम त्याग करके बच्चों को आराम देते हैं।इसलिए वे पूज्य होते हैं। हमें बुजुर्ग का आदर करना चाहिए। बड़ी उम्र में शरीर कमज़ोर हो जाता है और बीमारियाँ घेर लेती हैं। ऐसे में बुजुर्गों को सहारा देना हमारा कर्तव्य है। हमें उनके साथ प्रेम पूर्वक व्यव्हार करके उन्हें मानसिक संतोष प्रदान करना चाहिए।

बुजुर्ग उपेक्षित, बेसहारा और दयनीय जीवन जीने को मजबूर

आचार्यश्री आगे कहते हैं कि कुछ सुसंस्कारित परिवारों को छोड़ दें तो आज अधिकांश परिवारों में बुजुर्गों को भगवान तो क्या, इंसान का दर्जा भी नही दिया जा रहा है। किसी जमाने में जिनकी आज्ञा के बगैर घर का कोई कार्य और निर्णय नहीं होता था। जो बुजुर्ग परिवार में सर्वोपरि थे और परिवार की शान समझे जाते थे आज उपेक्षित, बेसहारा और दयनीय जीवन जीने को मजबूर नजर आ रहे है।

संयुक्त परिवार पर बोलते हुए आचार्यश्री ने कहा कि मौजूदा परिवेश में एकाकी जीवन ने संयुक्त परिवार जैसी वर्षों पुरानी परंपराओं को सामाजिक ताने-बाने से मानो अलविदा कह दिया है। पारिवारिक सुख क्या होता है? यह समझने के लिए आज के मनुष्य को अपने बीते कल से रूबरू होना पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि यह सत्य है कि संयुक्त परिवार के सुख दीर्घकालीन होते हैं जिसका अनुभव कठिनाई व दु:ख की घडि़यों में महसूस किया आता है। जब भी परिवार में कोई सुखद प्रसंग आता है तब अपनों की याद बड़ी सताती है।

विडंबना यह है कि एकांकी जीवन की अवधारणा ने संयुक्त परिवार की व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया है। आजकल के नवविवाहित युगलों को अपने बड़े-बुजुर्गों को साथ रखना अपनी स्वच्छंदता का हनन लगता है।

उन्होंने कहा कि जब भी हम गलतियाँ करते हैं तब हमें मीठी फटकार लगाकर समझाने वालों की याद आती है लेकिन यह तभी संभव है जब हम संयुक्त परिवार का हिस्सा हों। संयुक्त परिवार में सुखी संसार छिपा है, जिसके सुख का लाभ किस्मतवालों को ही मिलता है।

हमारे जीवन में कई ऐसी घटनाएँ होती हैं जिनसे हमें सबक मिलता है और अपनी गलतियों का अहसास होता है। यदि समय रहते ही हम अपनी गलतियों को सुधार लें तो शायद हमें बाद में पछताना नहीं पड़ेगा।

धर्मसभा का शुभारंभ

धर्मसभा का शुभारंभ पंडित शीतलचंद्र शास्त्री के संस्कृत भाषा में प्रस्तुत मंगलाचरण से हुआ।चित्र अनावरण और दीप प्रज्वलन बाहर से पधारे अतिथियों और श्रावक श्रेष्ठि, विद्वत्जनों द्वारा किया गया। संचालन डॉ. सुनील संचय  ने किया। आभार मनोज बबीना ने व्यक्त किया और स्वागत प्रबंधक राजेन्द्र लल्लू थनवारा ने किया।आचार्यश्री के कर कमलों में शास्त्र भेंट महिला मंडल ने किया।

इस अवसर पर श्रुत संबर्द्धन संस्थान मेरठ महामंत्री और आचार्यश्री के अनन्य भक्त  हंस कुमार जैन मेरठ, अध्यक्ष योगेश जैन खतौली, कोषाध्यक्ष विवेक जैन गाजियाबाद, संस्कृति संरक्षण संस्थान दिल्ली के अध्यक्ष राकेश जैन दिल्ली ने आचार्यश्री को श्रीफ़ल समर्पित कर आशीर्वाद ग्रहण किया।

इस अवसर पर  श्रेष्ठी शांतिलाल जैन मुरैना, शीलचंद्र अनौरा, प्रबन्धक  राजेन्द्र लल्लू थनवारा, उपाध्यक्ष मीना इमलिया, मनोज बबीना, डाॅ. सुनील संचय, अक्षय अलया, नरेंद्र राजश्री, पंडित शीतल चंद्र जैन,सनत खजुरिया, गेंदालाल सतभैया, पंडित गुलाब चंद्र जैन, जिनेंद्र जैन थनवारा, राजकुमार जैन ब्रांच मैनेजर एसबीआई बैंक,  शिक्षक सुरेन्द्र जैन, सतीश जैन,पुष्पेन्द्र जैन,   महेन्द जैन मड़वैया , मनोज चढ़रऊ , पंडित वीरेंद्र जैन,  सोमचंद्र जैन, मुकेश जैन,  सुनील आदि बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण, श्रेष्ठि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

 

  • डॉ. सुनील जैन संचय

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