प्राकृत भाषा की महत्ता को दर्शाती सिद्धि जैन ने की भव्य नाटय़ प्रस्तुति


दिल्ली के रोहिणी में परमपूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्ट मुनिश्री प्रणम्य सागर जी एवं मुनिश्री चंद्र सागर जी ने अपना 21वां चातुर्मास किया। इस दौरान दोनों संतों ने अपनी प्रखर वाणी से श्रद्धालुओं को धर्म की बारीकियां बतायी और इस दौरान कई सांस्कृति एवं धार्मिक कार्य आयोजित किये गये। इसी कड़ी में भव्य पिच्छिका परिवर्तन एवं कलश वितरण समारोह दोपहर 01.00 बजे से रोहिणी के जापानी पार्क में आयोजित किया गया।

इस दौरान संतों के पिच्छिका परिवर्तन एवं कलश वितरण कार्यक्रम के दौरान प्राकृत भाषा की महत्ता एवं उसकी सरलीकरण पर आधारित एक एक सुंदर नाटय़ प्रस्तुति कुमारी सिद्धि जैन द्वारा की गई। इस नाटय़ प्रस्तुतिकरण में हमारे प्राचीन जैन ग्रंथों, साहित्यों एवं ताम्रपत्रों पर अंकित प्राकृत भाषा की गूढ़ महत्ता को दर्शाते हुए उनके उच्चारण मात्र से जीवन में आ रही असीम कठिनाइयों एवं संकटों से बचा जा सकता है।

मुनिश्री प्रणम्य सागर जी की पिच्छी श्रीमती रजनी कासलीवाल दिल्ली को प्राप्त हुई। उन्होंने आजीवन ब्रह्हचर्य व्रत एवं दो प्रतिमाएं धारण की है। मुनिश्री चंद्र सागर जी की पिच्छी श्री मती योगेश जी रुचिजि दिल्ली को प्राप्त हुई और उन्होंने भी आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण मौजूद थे। कार्यक्रम के पश्चात पधारे सभी श्रद्धालुओं और अतिथियों के लिए भोजन की व्यवस्था भी की गई थी।

 


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