उद्धारक की राह तकती खुले आसमान के नीचे विराजमान प्रतिमा अपनी जगह से हिलने को तैयार नहीं

नासिक के अंजननेरी गांव में स्थापित है प्रतिमा

महाराष्ट्र प्रांत के नासिक जिले से लगभग पचास किलोमीटर दूर हनुमान जी की जन्म स्थली के रूप में ख्याति प्राप्त अंजननेरी तीर्थ क्षेत्र है जहां पर अंजननेरी के नाम से ही गांव बसा हुआ है।
गांव में पूर्ण रूप से जीर्ण शीर्ण अवस्था में लगभ दस जैन मंदिरों के अवशेष यत्र तत्र बिखरे हुए दिखाई देते हैं। हालांकि भारतीय पुरातत्व विभाग ने उन्हें अपने कब्जे में तो ले लिया है किंतु केवल चारों तरफ रेलिंग लगाकर छोड़ दिया है।
उन्हीं मंदिरों में से एक मन्दिर के प्रांगण में चतुर्थ कालीन पद्मासन प्रतिमा जिसे अब सब भगवान आदिनाथ के रूप में मानते हैं। खुले आसमान के नीचे एक चबूतरे पर विराजमान है ।

गांव के लोग व क्षेत्र के मैनेजर महावीर जैन यह बताते हैं की प्रतिमा को कई बार वहां से उठाने का प्रयास किया गया लेकिन प्रतिमा टस से मस नहीं हुई और वर्तमान में भारतीय पुरातत्व विभाग की उपेक्षा का शिकार हो रही है। ऐसा लगता है मानो यह प्रतिमा *अपने उद्धारक की राह तक रही है* जैन पत्रकार महासंघ के राष्ट्रीय सांस्कृतिक मंत्री संजय जैन बड़जात्या ने मौके पर जाकर प्रतिमा के दर्शन किए तो रेलिंग लगी होने एवम द्वार पर ताला लटका होने के कारण दूर से ही दर्शन हो सके। किंतु प्रतिमा को देखकर ऐसा लगता है कि बहुत ही चमत्कारी है। गांव के जैनेत्तर लोगों की भी आस्था इस प्रतिमा से जुड़ी हुई है जैसा कि उन लोगों ने बताया।

वास्तविक रूप से देखा जाए तो प्राचीन काल में जैन संस्कृति का बहुत बड़ा क्षेत्र था। जिसे नष्ट करने का आतताईयों ने बहुत प्रयास किया। वर्तमान में इन धरोहरों को सहेजने की पूर्ण आवश्यकता है जिसकी और मिलकर कदम उठाने चाहिए।


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