दिगंबर जैन संत 12 महीने से आठ महीने पर विहार करते हैं और बरसात के समय एक स्थान पर रुक जाते हैं। वह समय होता है चार महीने का। इसलिए उसे चौमासा या चतुर्मास कहते हैं। बारिश के समय जीवों की उत्पत्ति होती है। साथ ही हरियाली होती है। जैन संत जीवों की ¨हसा न हो इस लिए एक जगह अपनी साधना करते हैं। पहले साधु नगर में नहीं जंगल में चतुर्मास करते थे लेकिन आजकल नगर में चतुर्मास करते हैं तो धर्म प्रभावना होती है। अपनी संस्कृति को बढ़ाने के लिए जरूरी है कि जैन संत का चतुर्मास हो वहां समाज में वातावरण धर्ममय हो जाता है।
दिगंबर संत की चर्या क्या है। दिगंबर संत की साधना कितनी कठोर होती है। आज जहां संतों का चतुर्मास होता वहां समाज में ज्ञान की वृद्धि होती है। जैन संत आपको जगाने के लिए आते हैं। अगर चतुर्मास हो रहा है और आपने कुछ ज्ञान अर्जन नहीं किया तो आप समझ लेना आप क्या कर रहे हो। आपको लोग क्या कहेंगे। जीवन में सब कर लेना लेकिन कोई संत आए उनकी सेवा करना मत भूलना। क्योंकि ऐसा अवसर बार बार नहीं आता है। और जहां चतुर्मास में तो संत का पूरा लाभ लेना चाहिए। क्योंकि जो लाभ लेगा उसका भला होगा। दिगंबर मुनी पद विहार करते क्योंकि जीवों की ¨हसा न हो ये है दयाधर्म। उन्होंने कहा कि चतुर्मास का पावन अवसर जिसको मिलता है वो लोग और समाज धन्य हो जाता है। दिगंबर की चर्या सबसे कठिन होती है। आहार दिन में सिर्फ एक बार वो भी खड़े होकर, पद विहार जब तक शरीर में प्राण है तब तक पैदल ही जाते है। वो कही भी जाना हो। कैशलौंच कर खुदके बालों को अपने हाथ से उखाड़ना बहुत कठिन प्रक्रिया है। जब संत आपके शहर में नगर में रहेंगे अब आपको देखने को मिलेगा।
Source : jagran.com