खुद में खुद को पाना ही तप है, दशलक्षण महापर्व की आराधना कर रहे जैन श्रद्धालु।


जैन धर्म के चल रहे दस दिवसीय सबसे बड़ा और पावन पवित्र पर्व दशलक्षण महापर्व धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। लंगूर गली स्थित श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन गुरारा मंदिर में मंगलवार को उत्तम तप धर्म की आराधना की गई। वहीं प्रातः बेला में जैन श्रद्धालुओं ने जिनेन्द्र प्रभु का मस्तकाभिषेक, शांतिधारा व विशेष पूजा-अर्चना किया। इससे पूर्व महामंत्र णमोकार जाप, मंगलचरण पाठ, विनय पाठ, जिनेन्द्र स्तुति, अभिषेक पाठ आदि मंत्रोच्चारण और पारम्परिक धार्मिक अनुष्ठान की क्रियाएँ की गई। दशलक्षण धर्म पूजा समेत सोलहकारण पूजा, पंचमेरु पूजा, नवदेवता पूजा, समुच्चय पूजन, देव-शास्त्र-गुरु पूजन, भगवान वासुपूज्य पूजा आदि पूजा-पाठ कर भक्तिमय माहौल में भगवान को अष्टद्रव्य समर्पित किया गया। वहीं संध्या बेला संगीतमयी वातावरण में मंगल आरती का आयोजन किया गया।

जैन समाज से मीडिया प्रतिनिधि प्रवीण जैन ने बताया कि दशलक्षण धर्म का सातवां कदम यानी उत्तम तप धर्म है। तप अध्यात्म का मूल माना गया है। व्यक्ति संतुलित भोजन, ध्यान, बड़ों का सम्मान, पापों को स्वीकारोक्ति और गुरु सेवा के माध्यम से जीवन में तप को बढ़ा सकता है। भगवान आदिनाथ ने करीब छह महीनों तक तप साधना की थी और मोक्ष को प्राप्त किया था। हमारे तीर्थंकरों ने कठिन तप-साधना किया था। “इच्छा निरोधः तपः” अर्थात इच्छाओं का निरोध करना तप है।

पवित्र विचारों के साथ शक्ति अनुसार की गयी तपस्या से कर्मों की निर्जरा होती है और कर्मों की निर्जरा करके ही है मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए हमें तप करना चाहिए। इच्छाओं को रोकना तप है। अंतरंग एवं बहिरंग तपो के द्वारा आत्मा को शुद्ध किया जाता है। आत्मा तपश्चरण की साधना से परमात्मा बनता है। तप से ही पारमार्थिक लक्ष्य प्राप्त हो सकता है। खुद में खुद को पाना ही तप है। इस पर्युषण पर्व को दिगम्बर जैन समुदाय द्वारा 9 सितम्बर अंनत चतुर्दशी तक मनाया जाएगा।

— प्रवीण जैन


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