आदिवासी भी ईश्वर पर अटूट विश्वास करते हैं और उसकी पूजा-अचर्ना पूरी श्रद्धा/भक्ति से करते हैं। छत्तीसगढ़ राज्य के जगदलपुर स्थित इंद्रावती नदी के किनारे भाटागुड़ा में पटेलपारा के नजदीक एक प्राचीन इमली के पेड़ के नीचे जैन धर्म के सोलहवें तीर्थकर शांतिनाथ की तीन फुट ऊंची एवं देवी लक्ष्मी की दो फुट ऊंची दो दुलर्भ मूर्तियां रखी हुई हैं। मूर्तियों के मूल रूप से वहां के आदिवासी एकदम अनजान हैं, वह उन्हें पिछले दस साल से बेताल और कोटगुड़िन देवी के रूप में पूजते आ रहे हैं और प्रत्येक तीसरे वर्ष मूर्तियों के सामने मन्नत मांग कर बलि देते हैं। वहां के ग्रामीण पिछले काफी समय से एक मंदिर बनाने हेतु प्रयासरत हैं किंतु उन्हें सरकारी मदद नहीं मिल पा रही है। मूर्तियां पुरातत्व विभाग के रिकार्ड में भी नहीं है। जैन धर्मानुयायी के अनुसार एक प्रतिमा पर चिन्ह के रूप में मृग अंकित है, जिसके आधार पर उक्त मूर्ति भगवान शांतिनाथ की मानी जा रही है। इस इलाके में लगभग 400 की आबादी में भतरा आदिवासियों की संख्या है। बस्ती के पटेलपारा में इमली पहड में रहते हैं। वहां के स्थानीय निवासी इन मूर्तियों के बारे में बताते हैं कि ये दोनों मूर्तियां सैकड़ों वर्षो से यहां खुले में रखी हैं और स्थानीय लोगों की इन पर बड़ी आस्था है। इसलिए हर तीन साल के अंतराल में बारिश के पूर्व यहां जात्रा कर दो बकरों की बलि दी जाती है।
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