श्री मल्लिनाथ भगवान का मोक्ष कल्याणक एवं गणाचार्य विराग सागर जी महाराज का 41 वा क्षुल्लक दीक्षा दिवस बंगाईगांव जैन समाज ने धूमधाम से मनाया

भगवान श्री 1008 मल्लिनाथ भगवान मोक्ष कल्याणक महोत्सव एवं गणाचार्य 108 विराग सागर जी महाराज का 41 वा क्षुल्लक दीक्षा दिवस के अवसर पर बड़े बजार स्थित 1008 शांतिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर में जिनेन्द्र देव की पूजा-अर्चना करते श्रद्धालु।

बंगाईगांव।। आज शुक्रवार को जैन धर्म के 19वें तीर्थंकर श्री 1008 भगवान श्री मल्लिनाथ का मोक्ष कल्याणक महोत्सव एवं गणाचार्य विराग सागर जी महाराज का 41 वा क्षुल्लक दीक्षा दिवस महोत्सव बंगाईगांव दिगम्बर जैन समाज द्वारा हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया। इस पावन अवसर पर कई धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।
समाज के रोहित कुमार छाबड़ा ने बताया कि इस अवसर पर बड़े बजार स्थित दिगम्बर जैन शांतिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर में प. पू. श्रमणि आर्यिका 105 विदुषी श्री माताजी ससंघ के निर्देशन में प्रातःकाल मांगलिक क्रियाओं के साथ भगवान शांतिनाथ का प्रासुक जल से अभिषेक किया गया एवं विश्व की सुख-समृद्धि व शांति की कामना के साथ अध्यक्ष विजय रारा, संरक्षक अशोक पहाड़िया द्वारा विधिवत रूप से शांतिधारा कर भगवान को चंवर ढुलाए।
जिनेन्द्र देव के अभिषेक व शांतिधारा के उपरांत इन्द्र-इन्द्राणियों ने देव-शास्त्र-गुरू की पूजन के साथ अष्ट द्रव्यों से पहले श्री भगवान शांतिनाथ फिर भगवान श्री 1008 मल्लिनाथ भगवान की श्रद्धा-भक्ति और समर्पण भाव से पूजा-अर्चना की गई। वही मोक्ष कल्याणक के रूप में पूजन के दौरान निर्वाण कांड का आर्यिका श्री विदुषी श्री माताजी ससंघ के सानिध्य में भगवान 1008 मल्लिनाथ के मोक्ष कल्याण अवसर पर निर्वाण कांड का उच्चारण करते हुए मोक्ष के प्रतीक स्वरूप निर्वाण लड्डू प्रभु के चरणों में अर्पण किया इस मौके पर श्रावकों के मन मुदित हो उठे। तत्पश्चात गणाचार्य 108 विराग सागर जी महाराज के 41 वे क्षुल्लक दीक्षा दिवस के अंतर्गत आचार्य श्री की भक्ति पूर्वक अष्ठ द्रव्यो से पूजा अर्चना की गई वहीं महाअर्घ आचार्य चरणों में चढ़ाया गया। पूजन के दौरान महिला एवं पुरूष श्रद्धालुओं द्वारा एक से बढ़कर एक भजनों की प्रस्तुति दी गई। मन भावन प्रस्तुतियों पर जिनेन्द्र भक्त भक्तिरस में खूब झूमे इससे पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया। अंत में महाअर्घ्य समर्पण, शांतिपाठ एवं विसर्जन विधि के साथ पूजन सम्पन्न की गई। इसके उपरांत जिनेन्द्र देव की मंगल आरती उतारी गई। वही
इस पावन मौके पर दिगम्बर जैन मन्दिर में धर्मसभा के दौरान श्रमणि आर्यिका 105 विदुषी श्री माताजीने अपने मंगल प्रवचन में कहा कि उन्नीसवें तीर्थंकर भगवान श्री मल्लिनाथ जी का जन्म मिथिलापुरी के इक्ष्वाकुवंश में मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष एकादशी को अश्विन नक्षत्र में हुआ था। इनके माता का नाम माता रक्षिता देवी और पिता का नाम राजा कुम्भराज था। इनके शरीर का वर्ण नीला था जबकि इनका चिन्ह कलश था। इनके यक्ष का नाम कुबेर और यक्षिणी का नाम धरणप्रिया देवी था।तीर्थंकर 1008 भगवान श्री मल्लिनाथ जी ने मिथिलापुरी में मार्गशीर्ष माह शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को दीक्षा की प्राप्ति की थी और दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 2 दिन बाद खीर से इन्होनें प्रथम पारण किया था। उन्होंने बताया कि दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् दिन-रात तक कठोर तप करने के बाद भगवान श्री मल्लिनाथ जी को मिथिलापुरी में ही अशोक वृक्ष के नीचे कैवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
उन्होंने बताया भगवान श्री मल्लिनाथ जी ने हमेशा सत्य और अहिंसा का अनुसरण किया था और अनुयायियों को भी इसी राह पर चलने का सन्देश दिया था। फाल्गुन माह शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को 500 साधुओं के संग इन्होनें सम्मेद शिखर पर निर्वाण (मोक्ष) को प्राप्त किया था। उन्होंने बताया कि भगवान श्री मल्लिनाथ जी स्वामी के गणधरों की कुल संख्या 28 थी जिनमें अभीक्षक स्वामी इनके प्रथम गणधर थे। उन्होंने बताया कि इनकी ऊंचाई 25 धनुष (75 मीटर) और आयु 55000 वर्ष थी वही इनके शासक देव यक्ष कुबेर यक्षिणी धरणप्रिया थी।
उन्होंने आगे प्रवचन में अपने गुरु गणाचार्य विराग सागर जी महाराज के बारे मैं बताते हुए कहा कि भारत वर्ष की पावन भूमि सदैव नर रत्नों की जन्म दात्री रही है,जहाँ पर तीर्थंकरों ,यतिवरो तथा महापुरुषों ने जन्म लेकर पुरुषार्थ द्वारा ,त्याग ,तपस्या के माध्यम से अपना आत्म कल्याण किया। इस श्रंखला में आचार्य श्री विराग सागर जी ने जन्म लेकर इस वसुंधरा को गोरवान्वित किया है। मध्य क्षेत्र के पथरिया दमोह जिला ,म.प्र. नगर में जब सूर्य उच्च शशि पथ पर भ्रमण कर रहा था तब 2 मई 1963 के दिन श्रावक श्रेष्ठ श्री कपूर चंद जी तथा माँ श्यामा देवी के घर यह युग की महान विभूति का अवतरण हुआ,जिसका नाम रखा गया ‘अरविन्द’। बाल अरविन्द ने कक्षा पांचवी तक की मौलिक शिक्षा ग्राम पथरिया में ही प्राप्त की और आगे की पढाई करने हेतु सन 1974 में ग्यारह वर्ष की आयु में अपने माता पिता से दूर कटनी आये। वहां पर श्री शांति निकेतन दिग.जैन संस्था में 6 वर्ष तक धार्मिक तथा लोकिक शिक्षा ग्रहण की। लोकिक शिक्षा ग्यारहवीं तक पूर्ण की साथ में शास्त्री की परीक्षा भी उत्तीर्ण कीइस छह वर्ष की कालावधी में अनेक साधू -संतों का समागम प्राप्त हुआ,जो भावी जीवन की नीव डालने में साधनभूत हुआ।
उन्होंने आगे प्रवचन में कहा प्रेम, संयम व त्याग के बिना मनुष्य का उद्धार नहीं हो सकता। जिस व्यक्ति को अपने गुरू, आराध्य देव व जीवों के प्रति निःस्वार्थ प्रेम होता है वह सम्यकदृष्टि होने के साथ मोक्षगामी होता है। उन्होंने अहंकार को पतन का कारण बताते हुए सभी को अहंकार नहीं करने का संदेश दिया।
प्रवचन सुनने एवं कार्यक्रम में भाग लेने के लिए कस्बे के बड़ी संख्या में समाज के महिला-पुरुष धर्मावलंबियों ने भाग लिया एवं इस अवसर पर मौजूद रहे।
आज गणाचार्य 108 विराग सागर जी महाराज के 41 वे क्षुल्लक दीक्षा दिवस के इस अवसर पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित हुए। इसमें आज शाम को आचार्य चरणों में 41 जगमगाते हुए दीपकों की महाआरती भक्ति पूर्वक की गई। जैन समाज के सदस्यों ने श्री मल्लिनाथ भगवान के मोक्षकल्याणक दिवस की बधाई देते हुए कहा कि इस बंगाईगांव 1008 शांतिनाथ जिन प्रतिमा के दर्शन से ही क्षेत्र में निवास कर रहे सभी श्रावक स्वयं को सौभाग्यशाली मानते हैं कि हमे प्रभु की छत्र छाया में रहने का अवसर मिल रहा है।
                               — रोहित कुमार छाबड़ा

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