पैर छूते ही प्रमुखसागरजी ने प्रतीकसागरजी काे लगाया गले फिर 1 किमी तक नहीं छाेड़ा हाथ


मंदसोर। करीब 10 साल पहले दोनों का मिलन पुष्पगिरी में एक संत सम्मेलन के दौरान हुआ था। इसके बाद वापस दोनों धर्म प्रसार के लिए निकल गए। इसके बाद शुक्रवार को मंदसौर में दोनों का मिलन हुआ। प्रतीकसागरजी का शुक्रवार शाम 4 बजे खानपुरा केशव सत्संग भवन से नगर प्रवेश हुआ। समाजजन ने इनकी अगवानी की। उनके नगर प्रवेश पर तारबंगला पर विराजित आचार्य प्रमुखसागर जी स्वयं अगवानी करने गांधी चौराहा पहुंचे। यहां दोनों गुरु भाइयों का मिलन हुए। प्रतीकसागर ने वरिष्ठ प्रमुखसागरजी के जैसे ही चरण स्पर्श किए वैसे ही प्रमुखसागरजी ने उन्हें गले लगा लिया। इसके बाद करीब 1 किमी दूर तारबंगला जैन मंदिर पहुंचने तक उनका हाथ थामे रखा। यहां दोनों के प्रवचन हुए। बड़ी संख्या में समाजजन मौजूद थे।

गणधराचार्य श्री पुष्पदन्तसागर महाराज के दो शिष्यों का वात्सल्य मिलन देखकर श्रावक-श्रविकाओं के नेत्र खुशी से छलक उठे। प्रतापगढ़ पुलिया पर मुनि श्री का सकल दिगम्बर जैन समाज ने पादप्रक्षालन, पुष्पवृष्टी कर स्वागत किया। इसके बाद शाेभायात्रा शहर के मुख्य मार्गों हाेकर गुजरी। जगह-जगह पादप्रक्षालन, आरती की गई। तार बंगला स्थित शांतिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर में दोनों संतों ने दर्शन कर देश समाज परिवार की सुख शान्ति समृद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना की। तत्पश्चात धर्म सभा का आयोजन हुआ। जिसमें मुनिश्री प्रतीक सागर जी महाराज ने कहा कि संतों का मिलन समाज को एकता के साथ बैठने का संदेश प्रदान करता है। संतों का आगमन नगर में भक्तों के भाग्य को सौभाग्य में बदलने के लिए होता है। आचार्य श्री प्रमुखसागर जी महाराज ने धर्म सभा में कहा कि जो संत, संत से नहीं मिलता है, वह समाज को जोड़ता नहीं तोड़ता है। संत का काम समाज को तोड़ने का नहीं जोड़ने का है। समाज और संत धर्म रथ के दो पहिए हैं, जिस पर धर्म की इमारत खड़ी हुई है।

 

— अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी


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