ईश्वर की कृपा एवं बड़ों के आशीष के बिना जीवन सुखी नहीं होता


बाराबंकी के बड़ा जैन मंदिर में मंगलवार को आचार्य सुंदर सागर जी ने कहा कि बिना भगवान की कृपा और बड़े-बुजुर्गों के आशीष के बिना जीवन में सुख-शांति प्राप्त नहीं हो सकती। जीवन में निरंतररत कषायों के शयन के लिए मां जिनवाणी का आंचल थाम लेना चाहिए। आचार्यश्री ने कहा कि प्रतिपल जिनवाणी का स्वाध्याय करना एवं दूसरों को मोक्ष मार्ग के पथ पर अग्रसर करना ही अभीक्षण ज्ञानोपयोग का भाव कहलाता है।

उन्होंने आगे कहा कि संवेग भाव का अर्थ है, सम अर्थात चारों तरफ से वेग अर्थात प्रवाह का आना किंतु यह प्रवाह पाप रूप अथवा पुण्य रूप में भी हो सकता है। इसलिए जैसे भाव मन में धारण करेंगे, ठीक वैसा ही प्रवाह बनेगा और जीवन में वही प्रवाह आएगा। उन्होंने आगे कहा कि पूर्ण सुखी जीवन एवं परिवार के बीच भी जो विरक्ति उत्पन्न होती है अथवा संसार एवं नर शरीर के प्रति जो भीति उत्पन्न होगी है, वह ही वैराग्य है। इसलिए परिवार, धन, सम्पत्ति, शरीर से प्रीति न रख, अपनी आत्मा से प्रीति करो।


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