जैन मुनि ने ताज के साए में सिखाया योग


आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के शिष्यों मुनि प्रणम्य सागर व मुनि चंद्र सागर महाराज ने ताजखेमा के टीले पर ताज के साये में आगरा सहित विभिन्न प्रांतों के हजारों श्रद्धालुओं को अहम का त्याग कर अर्हं का मार्ग दिखा चेतना तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त किया।

आगरा दिगम्बर जैन परिषद द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मुनि प्रणम्य सागर ने अर्हं की पांच मुद्राओं (एक्टीविटी, रिलेक्सेशन, हीलिंग, अवेयरनेस, मोटीवेशन) के माध्यम से तन और मन दोनों को निरोग रखने का प्रशिक्षण दिया। प्रेम, अहिंसा और मैत्री का संदेश देता हरियाली से परिपूर्ण वातावरण में वास्तविक प्रेम की परिभाष से परिचय कराते हुए बताया कि कैसे अपने अंदर के प्रेम को प्रकट किया जाता है और अपनी चेतना के प्रेम को दूसरों तक पहुंचा सकते हैं।

मुनि प्रणम्य सागर ने कहा कि बीमारी हमारे शरीर व मन की कमजोरी से आती हैं। चाहें वह कोरोना हो या डेंगू। डाक्टर और वैद्य भी तभी रोग दूर कर पाते हैं, जब हमारा आत्मविश्वास मजबूत हो। यदि हमें खुद अपने ही रोग को दूर करने का विश्वास हो तो यही से स्वस्थ रहने की यात्रा शुरू हो जाएगी। इसके लिए चेतना और आत्मा के विश्वास का होना जरूरी है। ये दो विश्वास होंगे तो प्रकृति भी आपका साथ देगी। सूरज का तेज, पेड़ पौधों की हरियाली, सुहाना वातावरण, अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी, आकाश सब आपका साथ देंगे और पंचपत्वों की कमी आपके शरीर में कभी नहीं हो पाएगी। आप दुनिया में बड़े-बड़े आश्चर्य करके दिखा सकते हैं।

जब शाहजहां के पौते से मिले मुनिश्री
शाहजहां का पौता महाराज से मिला तो बैंक बैलेंस न होने से दुखी होने लगा। कहा कि मेरा दादा इतना दीवाना न होता तो मेरे पास भी बहुत बड़ा बैंक बैलेंस होता। मानस योग के दौरान हृदय को व्यायाम कराने को श्रद्धालुओं को हंसाने के लिए महाराज ने यह जोक सुनाया तो पूरे प्रांगण में ढहाके गूंजने लगे। महाराज ने कहा कि इतनी जोर से हंसिए कि रक्त में इतना बहाव बन जाए कि बीपी, कोलेस्ट्रॉल जैसे सभी रोह बाहर निकल जाएं।

अपने आप को ग्रहणशील बनाएं
ऊं अर्हं ऊं अर्हं ऊं… सत्संग से प्रारम्भ हुए कार्यक्रम में आजकल की भागदौड़ वाली जीवन शैली में तनाव और अवसाद मुक्त रहने के छोटे-छोटे जादुई टिप्स दिए मुनि ने। कहा कि किसी का बुरा सोचने के बजाय अपनी सफलता के बारे में सोचिए और प्रयास करिए। अच्छी बातों के लिए हमाशे ग्रहणशील रहें। होके मायूस न यूं शाम से ढलते रहिए, जिन्दगी भोर है सूरज से निकलते रहिए… पंक्तियों के माध्यम से सकारात्मक रहने का संदेश दिया तो वहीं बताया कि खुश रहने के लिए किसी के साथ की आवश्यकता नहीं। सिखाया कि मेरा सुख मेरा आनन्द मेरी चेतना से झड़ रहा है। मैं अपने आप में पूर्ण हूं। मेरा मन मेरा हृदय सशक्त है। तो आप तन और मन दोनों के सभी गोरों से दूर रहेंगे।


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