आचार्य श्री देवेंद्र सागर और श्री श्री रविशंकर का आध्यात्मिक मिलन


बेंगलूरु के जयनगर में राजस्थान जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ में आचार्य देवेंद्रसागर सूरी का आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणेता संस्थापक श्रीश्री रविशंकर से भावपूर्ण मिलन हुआ।

इस अवसर पर जैन संघ के पदाधिकारीयों ने श्रीश्री का स्वागत किया एवं शाल ओढ़ाकर बहुमान किया। नवपद के छठे दिन आचार्यश्री देवेंद्रसागर ने सम्यग्दर्शन पद पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा की भगवान महावीर ने सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र को मोक्ष का मार्ग बताया है। दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होगा व ज्ञान के बिना चारित्र नहीं होगा। लेकिन हम मात्र चारित्र को महत्व दे रहे हैं। मोक्ष मार्ग की साधना में यदि सम्यक दर्शन होगा तो चारित्र शृंगार बन जाएगा। उन्होंने कहा कि जिसे सम्यक दर्शन हो जाता है वह जड़-चेतन के भेद को भलीभांति जान जाता है। उसे शरीर और शरीर के साथ जुड़े हुए सम्बन्धों की नश्वरता का सदैव भान रहता है। संसार की वास्तविकता को समझने के लिए हमें परमात्मा के वचनों से प्रेम करना होगा। जो सुख में लीन और दुख में दीन नहीं बनता वही सम्यकत्वी है। आज जो हमारा पुण्य चमक रहा है वह कल अस्त भी हो जाएगा। सम्यक दर्शन ही मोक्ष का मार्ग है. सम्यक दृष्टा व्यक्ति की अपने देव, गुरु और धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा होती है। देव और गुरु के प्रति हमारी श्रद्धा, भक्ति और समर्पण हो तो उनका एक वचन भी हमारे जीवन को तारने में सक्षम हो जाता है। गुरु के प्रति श्रद्धा, समर्पण ने एकलव्य ने गुरु प्रतिमा के समक्ष धनुर्विद्या में निपुण बना दिया। आज सम्यक दर्शन पद की आराधना करते हुए हम देव, गुरु और धर्म पर सच्ची श्रद्धा रखकर यह प्रार्थना करें कि हमारी श्रद्धा सदैव अटूट बनी रहे।

श्रीश्री रविशंकर ने आचार्यश्री से हुए समागम पर कहा कि संतों का मिलन सौभाग्य होता है। संत मिलन अध्यात्म जागरण का संदेश देता है। संतों का सान्निध्य जीवन में आध्यात्मिक विकास का संचार करता है। इस अवसर पर जयनगर के राजस्थानी जैन समाज के पदाधिकारी एवं उपस्थित अन्य श्रद्धालु उपस्थित रहे।


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