उत्तर प्रदेश के नगर कौशांबी का नाम बौद्ध एवं जैन धर्म के कारण देश में ही नहीं विदेश में जाना जाता है। जैन धर्म के छठवें तीर्थकर भगवान पद्मप्रमु की जन्मस्थली होने के कारण यह नगर जैन धर्म की आस्था का केंद्र रहा है। इस क्षेत्र में बौद्ध और जैन धर्म की प्राचीन विरासतें नष्ट होती जा रही हैं। कौशांबी के कई ग्रामीण इलाकों में जैन विरासतें बिखरी पड़ी हैं और इन्हें देख-रेख और संरक्षण की दरकार है। न तो यहाूं का जिला प्रशासन और न ही पुरातत्व विभाग इनकी देखरेख करने की पहल कर रहा है। रखरखाव के अभाव में ये अपनी अवस्था खोती जा रही हैं और वह दिन दूर नहीं जब ये पूरी तरह समाप्त हो जाएंगी। इनकी देखरेख न होने का ही कारण है कि यहां से धीरे-धीरे बेशकीमती मूर्तियां गायब होती जा रही हैं। जैन धर्म के 24वें तीर्थकर महावीर ने कौशांबी में लगभग 12 वर्षो तक कठिन तपस्या की थी। इसके बाद क्षेत्र के कई लोग उनसे प्रभावित होकर उनके अनुयायी बने। इसके बाद कई जैन मंदिरों और धर्मशालाओं का निर्माण किया गया। हालांकि मुगलकाल में इन्हें नष्ट करने का प्रयास किया गया बावजूद इसके अभी भी इनके अवशेष बिखरे पड़े हैं। यहीं के कौशाल इमाम गांव के पास पद्मप्रमु का जन्म हुआ था और इसी स्थान पर प्राचीन जैन मंदिर बना है। मंदिर से लगभग 300 मीटर की दूरी पर खुदाई के दौरान तमाम अवशेष मिले हैं। इसके साथ ही छत रहित भवन का ऊपरी हिस्सा भी मिला है। यहां बने कमरों का आकार बहुत छोटा है, जिस कारण इसके कोषागार होने की आशंका जतायी जा रही है। आज भी इस स्थल पर बारिस के दिनों में सोने के सिक्के मिल जाते हैं। जैन मंदिर के पास ही सम्राट अशोक द्वारा स्थापित स्तम्भ भी है। जैन धर्म के लोग इसे महावीर कीर्ति स्तम्भ से जानते हैं। सम्राट अशोक के वंशज एवं जैनधर्मावलम्बियों ने इसकी स्थापना करायी थी। इसी पास एक कुंए का निर्माण भी करवाया गया था, जो नष्ट होने के कगार पर है। इस स्थान पर भगवान बुद्ध कई बार आए हैं। इसलिए इस स्थान को बौद्ध विहार के नाम से भी जाना जाता है। यमुना नदी के तट पर स्थिति छोटी सी पहाड़ी को प्रभाषगिरि कहते हैं। इस पहाड़ी की आधी ऊंचाई पर एक छोटा सा जैन मंदिर है। इस मंदिर में बादामी रंग की भगवान पद्मप्रमु की मूर्ति है, जो सूरज की किरणों के साथ अपना रंग बदलती रहती है। इस मूर्ति के दर्शन करने दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। इसके पास ही गुफाएं भी हैं उन्हीं के पास चंपहा गांव में भी एक जैन मंदिर है। मंझनपुर स्थित कलेक्ट्रेट में कौशांबी के ऐतिहासिकता को संजोने का प्रयास किया गया है। इसके अलावा कौशांबी वीथिका बनाकर स्थानीय प्रशासन ने जैन धर्म के महापुरुषों की मूर्तियों को संरक्षित करने का प्रयास किया है लेकिन ये प्रयास नाकाफी है।
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