तिजारा| चंद्रप्रभु अतिशय क्षेत्र में धर्म सभा का आयोजन किया गया। धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य ज्ञान सागर जी महाराज ने कहा कि भगवान महावीर मोक्ष जाने से 2 दिन पूर्व समवशरण आदि बाह्य लक्ष्मी का त्याग कर, एक स्थान पर ध्यानस्थ हो गए। वह दिन कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी का दिन था। महावीर प्रभु के लिए वह दिन योग निरोध की प्रक्रिया से पूर्व में प्रतिमा योग का दिन था। वह दिन धन तेरस के रूप मे प्रवर्तित हो गया।
दीपावली पर्व मनाने के कई कारण हैं। जैन दर्शन के अनुसार कार्तिक कृष्ण अमावस्या को महावीर प्रभु ने निर्वाण पद की प्राप्ति की थी। तभी से यह दिन महावीर निर्वाण दिवस के नाम से विख्यात हुआ। जिस समय प्रभु ने निर्वाण प्राप्त किया। उस समय अंधेरा था। तभी देवों ने आकर यह सोचकर कि प्रभु सभी को ज्ञान का प्रकाश देकर गए।इस लिए पावापुर में ही नहीं, चारों और दीप जलाकर उजाला कर दिया। तभी से वह दिन दीपावली के नाम से प्रसिद्ध हो गया। बाहर के साथ ही अंदर भी दीप जलाएं तभी यह पर्व मनाना सफल होगा। शुक्रवार को मंदिर में अखिल भारतीय विद्वत संगोष्ठी का समापन हुआ।
— अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी