सदी के महानतम संत, विराट व्यक्तित्व, सराकोद्धारक, राष्ट्र संत आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के प्रथम समाधि दिवस पर विशेष


भारतीय संस्कृति के उन्नयन में श्रमण संस्कृति का महनीय योगदान  है। श्रमण संस्कृति के बिना भारतीय संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती है । इस गौरवमयी श्रमण परंपरा में परम पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज का अहम योगदान रहा है।  उन्होंने जो भी बीड़ा उठाया वह अपने आप में एक बेमिसाल कदम थे।

परम पूज्य आचार्य सुमतिसागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज का जन्म मध्यप्रदेश के मुरैना नगर में 1 मई 1957 को हुआ था । श्रावक श्रेष्ठी पिता श्री शांतिलालजी, माता अशर्फीदेवीजी जैन के यहां आपका जन्म हुआ था । बचपन से सांसारिक वैराग्य को धारण करते हुए आपने 1974 में संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज से ब्रहमचर्य व्रत अजमेर (राजस्थान) में लिया था । 5 नवंबर 1976 को सिद्धक्षेत्र सोनागिरिजी में आचार्य श्री सुमतिसागरजी ने उन्हें क्षुल्लक दीक्षा प्रदान कर गुणसागर नाम दिया था ।  सन् 1988 में महावीर जयंती 31 मार्च 1988 को उन्हें सोनागिजी में मुनि दीक्षा प्रदान की गई और वे मुनि ज्ञानसागरजी महाराज के नाम से सुप्रसिद्ध हुए । 1989 में सरधना जिला मेरठ (उ.प्र.) में उन्हें उपाध्याय पद पर प्रतिष्ठित किया गया । 2013 में उन्हें अतिशय क्षेत्र बड़ागांव (उ.प्र.) में पंचम पट्टाचार्य विद्याभूषण सन्मति सागरजी की समाधि  के बाद  छाणी परम्परा का षष्ठ पट्टाधीश आचार्य घोषित किया गया था ।

दिगम्बर जैन धर्म के शीर्ष संतों में शुमार सराकोद्धारक , राष्ट्र संत, शाकाहार प्रवर्तक,  परम पूज्य, आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज की पिछले वर्ष 15  नवम्बर 2020 को अचानक समाधि हो गई थी। आचार्यश्री राजस्थान के बारां शहर में चातुर्मास कर रहे थे। भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में उनके सानिध्य में विशेष पूजन एवं लाड़ू चढ़ाने का आयोजन हुआ। आचार्यश्री ने प्रवचन भी दिए। इसके बाद शाम को उन्होंने देह का त्याग कर दिया। अचानक उनकी समाधि की खबर से देशभर के जैन समाज में शोक की लहर फैल गई।  महावीर निर्वाण के दिन जब हम सभी शाम को  घरों में केवलज्ञान के प्रतीक स्वरूप दीप प्रज्वलित कर रहे थे तभी  एक  समाचार मिला कि एक श्रुत ज्ञान दीप बुझ गया है।  आचार्य श्री ज्ञानसागर जी का देह परिवर्तन हो गया है, जिसने भी सुना दुःखित हो उठा। मैं क्या कोई भी इस खबर पर विश्वास ही नहीं कर पा रहा था कि एक ज्ञान सूर्य अस्त हो गया है।
मैं निःशब्द था, अश्रुधारा बह पड़ी। वे मेरे जीवन निर्माता थे। मुझे उनका आशीर्वाद सर्व प्रथम 1999 में सीकर में आयोजित एक कर्मक्रम में मिला, बस क्या था तब से गुरु चरणों में समर्पित हो गया। आचार्यश्री जाते-जाते भी एक इतिहास बना गए।
पूज्यश्री की प्रेरणा व आशीर्वाद से संचालित उनके अनेक प्रकल्पों से मैं निरंतर जुड़ा रहा। श्रुत संवर्द्धन संस्थान मेरठ में रहकर मुझे कार्य करने का अवसर मिला, 2013 का श्रुत संवर्द्धन पुरस्कार भी मुझे प्राप्त हुआ। श्रुत संवर्द्धन शिविर , सराक क्षेत्र की गतिविधियों, साहित्य प्रकाशन, सराक सोपान पत्रिका आदि सदैव जुड़ा रहा।  आचार्यश्री की अचानक समाधि होने से समाज को गहरा झटका लगा है।
साधना की जगमगाती देहरी से,
एक दीपक फिर किनारा कर गया।
मंजिलों की दूरियां पूछें कहाँ से,
 मील का पत्थर किनारा कर गया।।
समाज में जो शून्यता उनके जाने से हुई है उसकी भरपाई  होना संभव नहीं है।  आचार्य श्री ज्ञानसागर जी श्रमण परंपरा के दैदीप्यमान दिव्य नक्षत्र थे। उनका अवदान अविस्मरणीय है। वर्तमान शासन नायक भगवान महावीर के पद चिन्हों पर चलकर महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक के दिवस के दिन आपने दीक्षा अंगीकार की थी। भगवान महावीर के सिद्धांतों शिक्षाओं को जन -जन तक पहुंचा कर इस दीक्षा दिवस को सार्थक किया ।  उन्होंने भगवान महावीर के सर्वोदय तीर्थ को पढ़ा चिंतन से उसकी युगानुरूप छटा  भी बिखेरी। भगवान महावीर की तरह अध्ययन को चिंतन की कसौटी पर कस कर आचरण में उसका अनुवाद करना अच्छी तरह जानते थे । उन्होंने जीवन की की जो दिशा खोजी वह ऐतिहासिक थी और उस पर चलकर भी एक ऐतिहासिक उपलब्धि प्राप्त की । परम पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने जिन -जिन कार्यों को अपना आशीर्वाद व प्रेरणा प्रदान की  वस्तुतः आज उनकी  अत्यंत जरूरत थी । सही मायने में उन्होंने भगवान महावीर के संदेशों को प्रसारित कर उनके जन्म कल्याणक पर दीक्षा ग्रहण  करने की सार्थकता सिद्ध किया । शिक्षा, संस्कृति, धर्म ,दर्शन , कैरियर , शाकाहार, व्यसन मुक्त जीवन आदि की ओर जिस तरह से पूज्यश्री  ने कदम बढ़ाए उनकी चर्चा पूरे देश विदेश में हुई।
आचार्यश्री की प्रेरणा से कुछ विशेष कार्यों पर प्रकाश डालने की एक छोटी सी कोशिश कर रहा हूँ-
साहित्यिक अवदान :  प्राचीन जैन ग्रंथों की पांडुलिपियों के संकलन , संरक्षण एवं प्रकाशन लोकोपयोगी सत्साहित्य  को सर्व सुलभ कराने एवं आगम ग्रंथों के प्रकाशन की क्षीण होती परंपरा को पुनर्जीवित करने के भाव से प्राच्य श्रमण भारती की स्थापना 1991 में  सराकोद्धारक संत आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज की प्रेरणा से स्थापित इस संस्था द्वारा अल्पावधि में शताधिक ग्रंथों का प्रकाशन किया किया गया। अनेक ग्रंथों के अनेक संस्करण भी प्रकाशित हुए हैं । आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज छाणी ग्रंथमाला बुढ़ाना की भी 1991 में स्थापना की गई थी । इस ग्रंथ माला से भी शताधिक ग्रंथों का प्रकाशन हुआ है एवं अनेक ग्रंथों का प्रकाशन निरंतर जारी था ।  श्रुत संवर्धन संस्थान  मेरठ :  वैसे तो पूज्य आचार्यश्री की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से अनेक संस्थाओं का गठन हुआ है लेकिन श्रुत संवर्धन संस्थान सभी संस्थाओं की प्रतिनिधि संस्था रही है जो अन्य संस्थाओं से समन्वय स्थापित करते हुए पूज्यश्री की दृष्टि को आत्मसात कर उनके द्वारा सौपे गए कार्य को मूर्त रुप देने हेतु कृत संकल्प रहती है।  जिनवाणी के आराधकों को उनके कृतित्व के आधार पर प्रतिवर्ष श्रुत संवर्धन संस्थान के तत्वावधान में सम्मानित करने की योजना का क्रियान्वयन पूज्य आचार्यश्री के मंगल आशीर्वाद एवं प्रेरणा से संभव हुआ था ।  संस्थान के उक्त प्रयासों की भूरी -भूरी सराहना करते हुए बिहार के तत्कालीन राज्यपाल महामहिम श्री सुंदर सिंह भंडारी तिजारा में 1998 में संपन्न पुरस्कार समर्पण समारोह में मुख्य अतिथि के रुप में कहा था -“विलुप्त हो रही  श्रमण परंपरा  के साधकों के प्रज्ञान गुणानुवाद  की आवश्यकता को इस  तपोनिष्ठ साधक ने पहचान कर तीर्थंकर महावीर की देशना को गौरवमंडित करने के महायज्ञ में जो अपनी समिधा अर्पित की है , वह देश के सांस्कृतिक इतिहास का एक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं प्रेरक प्रसंग है,  जिसके प्रति  युगों-युगों तक इस देश की बौद्धिक परंपरा ऋणी रहेगी।”
ऑल इंडिया जैन एडवोकेट फोरम (जैन अभिभाषक सम्मेलन व संगठन) : 
पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज द्वारा समय–समय पर कराए गए  जैन एडवोकेट की गोष्ठियों, सम्मेलनों का ही परिणाम है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा ,कर्नाटक ,तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात आदि कई प्रांतों में जैन अभिभाषकों  के प्रांतीय संगठन गठित हो पाए हैं।  पूज्यश्री ने बुद्धिजीवियों को एक मंच पर लाने के लिए जो  प्रयास किए वे ऐतिहासिक हैं। इस संगठन को स्थापित करने से धर्म,समाज, संस्कृति, मंदिर, तीर्थ और साहित्य के संरक्षण में कार्य किया।
डॉक्टर सम्मेलन :
पूज्यश्री प्रत्येक सम्मेलन में बल देते थे कि चिकित्सा व्यवसाय से किसी भी रुप से संबद्ध प्रत्येक व्यक्ति को जैनदर्शन के मूल तत्व सिद्धांतों का ज्ञान होना चाहिए। चिकित्सा व्यवसाय का मूल आधार पर सेवा,  परोपकार, पर -पीड़ा निवारण है और जैन धर्म भी अहिंसा परमो धर्म और आदर्शों के प्रचार-प्रसार पर बल देता है । इस प्रकार जैन धर्म और चिकित्सा व्यवसाय में चोली दामन का साथ है । इन सम्मेलनों से पूज्यश्री ने शाकाहार,  व्यसन मुक्ति अभियान को पूरे भारतवर्ष में फैलाया था। इन सम्मेलनों ने आचार्यश्री के आशीर्वाद से  एक नया इतिहास लिखा ।
अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों का सम्मेलन :
अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों का सम्मेलन के माध्यम से आचार्यश्री ने पदाधिकारियों को एक साथ बैठकर समाज, संस्कृति और नैतिक शिक्षा के संरक्षण, संवर्द्धन का पाठ पढ़ाया। उन्होंने प्रेरित किया कि हम अपने समाज के बच्चों को प्रशासनिक क्षेत्र में भेजें या न्यायपालिका के क्षेत्र में भेजें जिससे अधिकारी बनकर हमारे प्रति अन्याय नहीं होने देंगे।  इस उद्देश्य को लेकर पूज्यश्री के मंगल सानिध्य में अखिल भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों के सम्मेलन आयोजित हुए । सभी अधिकारियों को आचार्यश्री ने  एक ही बात कही हमारे समाज की उन्नति शिक्षा के स्तर बढ़ाने से होगी।
शिक्षक सम्मेलन : 
शिक्षा का उद्देश्य सुसभ्य नागरिक का निर्माण है,  जिससे मानव जीवन सुखमय हो सके।  शिक्षा की उचित समीक्षा एवं ज्ञान उपार्जन के भाव से अनेक गोष्ठियों का आयोजन किया जाता रहा ताकि छात्र समय -समय पर नवीन अनुसंधानों से परिचित हो सकें। इसी भावना  को साकार रूप प्रदान करने हेतु पूज्यश्री की प्रेरणा से उनके सान्निध्य में  समय-समय पर अनेक सम्मेलनों, गोष्ठियों आयोजन हुआ।  छात्र ,अध्यापक इन सम्मेलनों के माध्यम से नवीनतम  शैक्षिक गतिविधियों से अवगत हो सके। शिक्षा का शंखनाद करने  शिक्षा के महत्व का ज्ञान कराने एवं संस्कार उत्पन्न करने के उद्देश्य से समय-समय पर पूज्यश्री के पावन सानिध्य में अनेक स्थानों पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया।  मेरा सौभाग्य है कि बरनावा जिला मेरठ में आयोजित एक राष्ट्रीय शिक्षक सम्मेलन के संयोजन का दायित्व निभाने का अवसर भी प्राप्त हुआ है। पूज्यश्री के सान्निध्य में आयोजित इस सम्मेलन में देश भर से आये शिक्षकों को आचार्यश्री ने अनेक सूत्र प्रदान किये।
महिला सम्मेलन :
घरों में जो महिलाओं पर अत्याचार किए जाते हैं , वे उनसे कैसे बचें ? टूटते -बिखरते परिवारों को कैसे बचाया जाए? गृह क्लेश से मुक्ति कैसे मिले ? इन सब उद्देश्यों के लिए कर पूज्यश्री के मंगल सान्निध्य में अनेक जगह महिला सम्मेलन हुए और महिलाएं कई क्षेत्रों में आगे बड़ीं ।
विद्वत संगोष्ठियॉ एवं अधिवेशन:
आपकी प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में विद्वानों ने बहुआयामी प्रगति की।  पूज्यश्री का विद्वानों के प्रति अपार वात्सल्य भाव रहा है। आप निरंतर जिनवाणी के प्रचार-प्रसार, प्रकाशन में जहां प्रेरणा देते रहे वहीं विद्वानों को मार्गदर्शन और कार्य की रूपरेखा देकर युवा एवं स्वाध्याय प्रेमियों को सत्साहित्य,  शोध खोजपूर्ण सामग्री और साहित्य उपलब्ध कराया।  आपकी  आशीष छांव तले विद्वानों के अनेक अधिवेशन, संगोष्ठी कार्यशाला निरंतर होती रहीं,  जिससे विद्वानों में एक नई जागृति और स्फूर्ति देखने को मिली। विद्वानों के सम्मान और विद्वत संगोष्ठियों के आयोजनों की आज जो समृद्ध श्रृंखला  दिखाई दे रही है उसको पूज्यश्री ने ही गति प्रदान की थी।  अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद एवं अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन विद्वत परिषद के अधिवेशन आपके मंगल सान्निध्य में हुए।  आपके सानिध्य में आयोजित विद्वत  संगोष्ठियों में अएक नए तथ्य उभरकर सामने आये।
ज्ञान संस्कारशिक्षण शिविरों से संस्कारों का शंखनाद :
बढ़ती हुई  अनैतिकता को देखकर  बच्चों में संस्कारों के बीजारोपण हेतु पाठशाला प्रारंभ की  गईं सालों यह पाठशालाएं अच्छी तरह से चलीं परंतु प्रतिस्पर्धा के युग में समयाभाव के कारण और अरुचि पैदा होने से पाठशालाएं  धीरे-धीरे समाप्त हो रहीं थीं। आचार्यश्री को चिंता हुई कि युवा पीढ़ी को पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से कैसे रोका जाय, इसके लिए उन्होंने हल खोजा ज्ञान संस्कार शिक्षण शिविर।  मेरा सौभाग्य है कि  मुझे इन शिविरों के प्रारंभिक से ही संयोजक के रूप में योगदान देने का अवसर आचार्यश्री ने प्रदान किया । मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र आदि राज्यों के विभिन्न स्थानों पर  आयोजित अनेक शिविरों में हजारों की संख्या में युवा पीढ़ी में एक नया बदलाव देखा  गया।  युवा पीढ़ी को गर्त में  जाने से बचाने का शिविर अच्छा उपाय साबित हुए । यह पूज्यश्री का बहुत ही बड़ा उपकार है जो युवा पीढ़ी कभी नहीं भुला पाएगी।
शाकाहार सम्मेलन :
आज समाज की नई पीढ़ी में शाकाहार एक प्रश्न चिन्ह बन गया है।  पूज्यश्री की प्रेरणा एवं सानिध्य में विभिन्न नगरों, कस्बों , गांवों में विविध कार्यक्रम आयोजित हुए। उनमें उन्होंने अपने सम्बोधन के माध्यम से नई पीढ़ी में इतना उत्साह भरा की जो वर्ग संस्कारों से दूर हो रहा था वह जीवन वह नैतिक जीवन और आचार -शीलता की ओर आकर्षित हुआ। इसमें पुण्यश्री की प्रेरणा से शाकाहार रैलियां, सम्मेलन , निबंध प्रतियोगिता ,भाषण प्रतियोगिताएं , चित्रकला प्रतियोगिता एवं प्रदर्शनी जैसे कार्यक्रमों का आयोजन होता रहा, जिसमें अनेक शासकीय-अशासकीय विद्यालयों, महाविद्यालयों के हजारों- लाखों की संख्या में प्रतिभागियों ने भाग लेकर अपने जीवन में शाकाहार को स्थान दिया।
प्रतिभा सम्मान : 
अखिल भारतीय जैन प्रतिभा प्रोत्साहन की इस योजना से वैश्विक सेवा के लिए तैयार हो रहे मेधा संपन्न छात्र-छात्राएं अब  धर्म एवं समाज के विकास के लिए भी उद्यत दृष्टिगोचर  होते हैं । यह सब संभव हुआ है पूज्यश्री के मंगल चिंतन की अजस्रधारा के सतत प्रभाव से।  प्रतिभाओं के प्रोत्साहन के लिए एक आयोजन का विचार फलीभूत हुआ जिसमें जैन समाज के प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने हेतु योग्य छात्र -छात्राओं को सम्मानित एवं पुरस्कृत करने का निर्णय लिया गया  । इस योजना के अंतर्गत भारत में किसी भी प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की  माध्यमिक परीक्षाओं की योग्यता सूची में स्थान पाने वाले छात्र-छात्राओं तथा 90% या उससे अधिक अंक प्राप्त करने वाले छात्र छात्राओं को सम्मानित पुरस्कृत किया जाता रहा है।  इस आयोजन में पूरे भारतवर्ष में अपनी एक अलग पहचान बनाई, एक अलग छाप छोड़ी।  हजारों छात्र सम्मानित होकर देश,  समाज की सेवा में संलग्न हैं। इस आयोजन की एक स्मारिका के संपादन का सौभाग्य मुझे भी मिला।
कैरियर काउंसलिंग :
आज के इस प्रतिस्पर्धा के युग में प्रत्येक विद्यार्थी अपने भविष्य को लेकर चिंतित रहता है उसे सही मार्गदर्शन ना मिल पाने के कारण वह अपनी योग्यता का सही मूल्यांकन नहीं कर पाता है, इसके समाधान के लिए पूज्यश्री के पावन सानिध्य में कैरियर काउंसलिंग का आयोजन अनवरत रूप से जारी रहा जिसमें जहां पूज्यश्री ने विद्यार्थियों को महत्वपूर्ण संबोधन दिए वहीं नामी- गिरामी काउंसलर भी आकर उनको सही दिशा बोध देते रहे।  कैरियर काउंसिलिंग के माध्यम से हजारों विद्यार्थी अपनी योग्यता का सही मूल्यांकन करने में अपने आप को सक्षम पा रहा हैं, यह सब पूज्य श्री के मंगल आशीर्वाद से संभव हो पाया था।
पुलिस लाइन में संबोधन:
पूज्यश्री अपनी विराट करुणामयी  दृष्टि के चलते पुलिस अधिकारियों में उनके कर्तव्यों की भावना विकसित करने, उन्हें सामान्य जन से जोड़ने तथा पुलिस की नकारात्मक छवि को सकारात्मक बनाने हेतु अभियान चलाया
  इस हेतु अनेक अधिकारी पूज्यश्री के संपर्क में आए तथा अनेक स्थानों पर कार्यशाला में तथा सेमिनार आयोजित किए जाते रहे।  भारतीय पुलिस कर्मियों व अधिकारियों में नैतिक संस्कार कैसे आएं, दया ,करुणा ,कर्तव्य परायणता कैसे आए, आम आदमी अपने को सुरक्षित महसूस कैसे करें, यह सब बातें पूज्यश्री पुलिस वालों के बीच अपने मंगल उद्बोधन में रखते रहे।
पत्रकार सम्मेलन :
अपनी बात जन -जन तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम है मीडिया। मीडिया  तत्काल प्रभाव से जन-जन तक तुरंत गति से पहुंचता है।  पूज्यश्री द्वारा देश के विभिन्न अंचलों में प्रेस वार्ता एवं पत्रकार सम्मेलन में  जैन धर्म के मूल सिद्धांतों के बारे में विस्तार एवं सरलता के साथ अपनी वाणी द्वारा आमजन के कल्याण हेतु सफल रहे और उन्होंने हमेशा पत्रकारों को बुला करके यही संबोधन दिया कि दैनिक अखबार देश में नैतिक शिक्षा की क्रांति ला सकते हैं, उनमें नैतिक शिक्षा संबंधी, संस्कार संबंधी, अच्छे-अच्छे आलेखों, समाचारों , जानकारियां प्रमुखता से प्रकाशित की जाएं तो युवा पीढ़ी को बहुत बड़ा लाभ होगा।
सराकोद्धारक एवं सराक सम्मेलन :  पश्चिम बंगाल ,झारखंड, बिहार, उड़ीसा में एक ऐसी जाति निवास करती है जिसे  ‘सराक’  जाती कहते हैं  वह मूलत जैन रही है । इनके संस्कारों से जैन धर्म की खुशबू आती है । जैन समाज के महल की नींव के पत्थर की तरह  सराक समाज आज भी बड़ी संख्या में मौजूद है । सराक शब्द श्रावक शब्द का अपभ्रंश है। सराक मूल रूप से जैन हैं यह अनेक तथ्यों और प्रमाणों से सिद्ध हो चुका है।  हमारे भूले, बिछड़े सराक भाइयों का उद्धार का बीड़ा पूज्यश्री ने उठाया । और वे  सराकोद्धारक संत के नाम से जाने जाने लगे । आचार्यश्री का तडाई चातुर्मास ऐतिहासिक था। पूज्यश्री प्रेरणा से सराक क्षेत्र में मंदिरों का निर्माण ,पाठशालाओं का संचालन,  सिलाई सेंटर, कम्प्यूटर केंद्र, विद्यालय, छात्रों को छात्रवृत्ति, पाठ्य पुस्तकें, असहाय विधवा पेंशन,  यात्रा करवाना ,महावीर जयंती आयोजन, पर्यूषण पर्व का आयोजन , वस्त्रों का वितरण , शिविर का आयोजन, एक्यूप्रेशर चिकित्सक गतिविधियां आदि नेम कार्य हैं जो सराक क्षेत्र में पूज्यश्री की सतत प्रेरणा से  रही हैं ।  मुझे भी सराक क्षेत्र की गतिविधियों को देखने का अवसर मिला। सराक क्षेत्र जाकर मैंने देखा कि आचार्यश्री ने सराको के लिए जो कार्य किया है वह अद्भुत है, वे इसके लिए सदियों तक याद किये जायेंगे।पूज्यश्री के सानिध्य में विगत अनेक वर्षों से सराक सम्मेलनों की भी अनवरत श्रृंखला भी गतिमान थी  जिसमें सराक  भाइयों को पूज्यश्री  अपने  सान्निध्य में धर्म,  दर्शन का तो ज्ञान कराते ही थे साथ में ही जीवन उपयोगी अनेक गतिविधियों का प्रशिक्षण प्रदान किया जाता रहा है।  सराक बंधु पूज्यश्री को अपना मसीहा मानते हैं।
प्रभावना के संवाहक अनेक विधि-विधान : 
साधुओं का मंगल विहार हमेशा होता रहता है,  जिससे श्रावक संस्कार और जैन धर्म का विकास निरंतर होता रहा है,  इसी क्रम में पूज्यश्री ने लगभग संपूर्ण भारत में विहार कर जहां स्व- कल्याण किया है वहीं समाज में विधि-विधान, अनुष्ठान आयोजन में अपना मंगल आशीर्वाद और  सान्निध्य प्रदान कर जन-जन को संस्कारित करने के कार्य किए हैं। अनेक पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं में अनेक कीर्तिमान पूज्यश्री के सानिध्य में स्थापित हुए हैं । पूज्यश्री की प्रेरणा से अनेक मंदिरों, मानस्तम्भ आदि के निर्माण भी हुए हैं ।  आज वे कार्य जैन जागृति के प्रतीक बनकर समाज  तथा देश की दिशा को दिशा दे रहे हैं।
समाज के प्रतिनिधियों का सम्मेलन :
पूज्य श्री का चिंतन प्रत्येक वर्ग के लिए  प्रस्फुटित होता है । पूज्यश्री के सानिध्य में पुजारी सम्मेलन,  समाज के पदाधिकारियों का सम्मेलन,  जैन तीर्थक्षेत्रों  के प्रबंधकों का सम्मेलन, तहसील ,जिला स्तरीय जैन सम्मेलन, ब्रह्मचारी सम्मेलन अनवरत रूप से आयोजित होते रहे।  ऐसा कार्य केवल पूज्यश्री  ही कर सकते थे ,जो सबके प्रति अपनी संवेदना और वात्सल्य रखते थे।
जैन ज्योतिष प्रशिक्षण शिविर :
पूज्यश्री का  विचार रहता था कि ज्योतिष की सही विधि,  मान्यता अनुसार मुहूर्त निकाले जाएंगे तो विद्वानों के द्वारा संपन्न कराए जाने वाले समस्त विधि-विधान और संस्कार निर्दोष और निर्विध्न कराने में सक्षम हो सकेंगे। जैन  ज्योतिष में युवा विद्वानों को दक्ष बनाने के लिए पूज्यश्री के सानिध्य में अनेक जैन ज्योतिष शिविरों का आयोजन हुआ , जिससे युवा विद्वान जैन ज्योतिष में निष्णात होकर जैन विधि से मुहूर्त संशोधन, कुंडली निर्माण आदि कार्य को संपादित करने लगे।
कारागारों में संबोधन : 
संतों की चिंता कभी  वैयक्तिक  नहीं होती वरन वे संपूर्ण समाज के लिए चिंतन करते हैं।  ऐसे ही संत पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज थे जो आदर्श समाज की स्थापना के आह्वान की प्रेरणा शक्ति बने हुए थे । पूज्यश्री के उसी आंदोलन का एक भाग रहा है उनके जेलों में प्रवचन।  जेल के कैदियों के साथ   संवाद स्थापित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था जिसे पूज्यश्री ने स्वीकार किया और जेलों में पूज्यश्री ने अपनी अनंत करुणा, भक्ति ,ज्ञान व तपस्या की पावन गंगोत्री में समाज के उस उपेक्षित वर्ग का भी अवगाहन कराया  जिसे सतत उपेक्षा मिलती है।  पूज्यश्री के जेल प्रवचनों की महत्ता  को आंक पाना बहुत सहज कार्य नहीं है। उन्होंने एक ऐसे समूह से संपर्क स्थापित किया जो समाज से पूरी तरह कट चुका था और समाज उनसे खौफ खाता था।  पूज्यश्री कहते थे कि जेलों के बंदी भी मनुष्य ही हैं,  जब उनके प्रति हमारा रवैया बदलेगा तो वे  खुद भी सोचने को मजबूर होंगे।
तिहाड़ जेल हो अन्य जिला स्तरीय जेल अनेक जेलों में पूज्यश्री ने अपने मार्मिक संबोधन से हजारों कैदियों के जीवन को एक नई राह दिखाई। हजारों कैदियों ने शाकाहार अपनाया, व्यसन मुक्त और अपराध मुक्त जीवन का संकल्प आचार्यश्री से लिया। धर्म क्रांति की राह में पूज्यश्री यह सोपान अपने आप में बेहद अनूठा था।
सीए सम्मेलन :
पूज्यश्री की प्रेरणा से सीए सम्मेलनों, गोष्ठियों का आयोजन उनके सानिध्य में किया जाता रहा है जिसमें संपूर्ण भारत वर्ष से बड़ी संख्या में सीए  जुड़ते रहे और आचार्यश्री के सानिध्य में विभिन्न बिंदुओं पर विचार-विमर्श करते रहे।
बैंकर्स सम्मेलन :
पूज्यश्री के प्रेरणा से राष्ट्रीय जैन बैंकर्स फोरम की स्थापना हुई और इसके माध्यम से अनेक लाभकारी आयोजन, सम्मेलन, गोष्ठियां हुईं।
इस प्रकार  आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज छाणी परंपरा के षष्ठ पट्टाचार्य राष्ट्रसंत आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज का का योगदान भारतीय संस्कृति ,समाज के उन्नयन,  संरक्षण संवर्धन में निरंतर रहा है जो स्तुत्य, प्रेरणादाई अनुकरणीय है।
पूज्य ज्ञान सागर जी महाराज ने अपने साधना काल में जितने भी कार्य किये वे सभी देश और धर्म के उत्थान के लिये ही किये । उनका सहसा चला जाना किसी को भी सहन नहीं हो रहा है । लेकिन वैराग्य के इस प्रसंग से हमें उनके जीवन और जीवन के महनीय कार्यों से प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए ।
अंत समय भी दे गए जोड़ने की सीख :
आप जीवन भर  जोड़ने का संदेश देते रहे , 36 नहीं 63 की सीख देते रहे यह सीख उन्होंने देह से विदा होते-होते भी दी। उनकी समाधि   63 वर्ष की आयु में हुई,  यह 63 पूज्यश्री का प्रेरक सूत्र था।
अद्भुत संयोग :
यह भी अद्भुत संयोग है कि आचार्यश्री की मुनीदीक्षा महावीर जयंती के दिन हुयी थी और समाधिमरण भी भगवान महावीर स्वामी निर्वाण कल्याणक की वेला में 15 नवम्बर को हुआ है।  निश्चित ही यह बता रहा है कि वे सचमुच वर्तमान में वर्द्धमान सम थे।
किसी को तपा कर खुश होना अलग बात है।
 इन्होंने खुद को तपा कर रोशनी की थी।।
सराकोद्धारक आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज जैसे महान् प्रभावक सन्त का इस तरह आकस्मिक   समाधिमरण हो जाना स्तब्ध कर देता है । वे चर्या में दृढ़ और धर्म प्रभावना में सतत रत रहने वाले सन्त थे ।  उन जैसे अद्वितीय सन्त का स्थान सदैव रिक्त रहेगा ।
उन जैसे अद्वितीय विराट संत का अचानक देह परिवर्तन लाखों श्रद्धालुओं को स्तब्धकारी है। 16 नवम्बर को बारां राजस्थान में उनके अंतिम दर्शनों के लिए पूरे भारत देश के हजारों श्रद्धालु उमड़ पड़े थे।
प्रथम समाधि दिवस :
आचार्यश्री के देवलोकगमन को एक वर्ष हो रहा है। 15 नवम्बर 2021 को उनके प्रथम समाधि दिवस पर आचार्यश्री की प्रेरणा से स्थापित ज्ञानतीर्थ मुरैना में परंपरा के पट्टाचार्य श्री 108 ज्ञेय सागर जी महाराज एवं आर्यिका श्री आर्ष मती माता जी के ससंघ सान्निध्य में संघस्थ ब्र. अनीता दीदी जी के निर्देशन में विविध आयोजनों के साथ प्रथम समाधि दिवस मनाया जाएगा, जिसमें देश के विभिन्न स्थानों से आचार्यश्री के भक्तगण उपस्थित रहेंगे। इसके साथ ही  समाधि स्थल बारां राजस्थान में 15 नवम्बर को ही आचार्यश्री की चरण छतरी का लोकार्पण विधि विधान के साथ ब्र. जय कुमार जी निशांत भैया के निर्देशन में किया जाएगा।
आचार्य श्री ज्ञानासागर जी ने तीर्थंकर महावीर की देशना को गौरवमंडित करने के महायज्ञ में जो अपनी समिधा अर्पित की है , वह देश के सांस्कृतिक इतिहास का एक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं प्रेरक प्रसंग है,  जिसके प्रति  युगों-युगों तक इस देश की बौद्धिक परंपरा ऋणी रहेगी।
गुरुदेव आप भले ही देह से यहाँ उपस्थित न हों लेकिन आप हमेशा मेरी सांसों में सदैव विराजमान रहेंगे। आप हमारी स्मृतियों में सदैव जीवन्त रहेंगे और सदैव  सदैव कृतज्ञ रहेंगे । आपने जो दिया वह अदभुत, अकल्पनीय है।
अनंत, अशेष स्मृतियों को याद करते हुए उनके चरणों में  कोटिशः नमन!
रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई।
आप जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई।।
— डॉ. सुनील जैन संचय

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