धर्म, संस्कृति और भव्यता की 800 वर्ष पुरानी धरोहर है यह दिगंबर जैन मंदिर


विदिशा। धर्म, संस्कृति और भव्यता की 800 वर्ष पुरानी विरासत विदिशा में आज भी शान से सिर उठाए मौजूद है। किले अंदर स्थित श्रीशीतलनाथ दिगंबर बड़ा जैन बाहर से भले ही अपनी विशालता और भव्यता का जलवा बिखेरता नजर न आता हो, लेकिन परिसर में कदम रखते ही अपनी धरोहर पर यकीनन गर्व होता है। विशाल परिसर, भव्य इमारत, मोहक नक्काशी, छत पर सोने की कारीगरी, हजारों प्रतिमाएं, मुनिश्री की दुर्लभ प्रतिमा और तीर्थंकरों की चौबीसी सब दिव्यता लिए नजर आती है।

मंदिर ट्रस्ट के पिछले 40 वर्ष से अध्यक्ष मलूक चंद जैन बताते हैं कि जो दिखता है वैसा नहीं बल्कि उससे भी कहीं अधिक है इस मंदिर में। नीचे तलघर है, जो सुरक्षा कारणों से बंद कर दिया गया है। मुगल शासक औरंगजेब के समय जब प्रतिमाओं और मंदिरों को नुकसान पहुंचाया जा रहा था, तब इसी तलघर में देव प्रतिमाएं छिपाई गईं थीं। भगवान पाŸवनाथ की एक प्रतिमा के सीने पर आतातायियों ने छैनी से तोडऩे की कोशिश की थी, लेकिन वे ऐसा कर नहीं सके। छैनी के निशान अभी भी प्रतिमा के सीने पर हैं।

मंदिर में है तीर्थंकरों की चौबीसी
मंदिर की सबसे ऊपरी मंंजिल पर जैन धर्म के सभी चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमाएं मौजूद हैं, यहां आने वाले श्रद्धालु इन तीर्थंकरों के सामने णमोकार मंत्र सहित पूजा आराधना करते हैं। मूल मंदिर भगवान शीतलनाथ का है, मंदिर में संगमरमर, पत्थर, पीतल और अष्टधातु की हजारों प्रतिमाएं मौजूद हैं। कुछ स्थानों पर पत्थर के स्तंभों पर कांच की खूबसूरत नक्काशी दिखती है। वहीं काष्ठ की गंधकुटी भी मौजूद है।

विशाल मंदिर, द्वार छोटा, ताकि अभिमान त्याग झुककर ही आएं
भव्य और विशाल मंदिर का मुख्य द्वार ऊंचाई में बहुत छोटा है। यही कारण है कि मंदिर में प्रवेश करते समय झुककर आना पड़ता है। इसका सीधा सा अर्थ है कि भगवान के मंदिर में प्रवेश करते समय अभिमान त्यागकर और सिर झुकाकर ही प्रवेश करें। मंदिर की आकृति रथ के समान है, द्वार पर दो हाथी बने हैं जो रथ को खींचते हुए प्रतीत होते हैं।

महाकीर्ति मुनि की प्रतिमा भी मौजूद
जैन धर्म में मुनिराजों की प्रतिमाएं बनाने का विधान नहीं है। लेकिन इस मंदिर में महाकीर्ति मुनि की काले संगमरमर से बनी प्रतिमा भी मौजूद है। इस प्रतिमा के साथ ही कमंडल रखा है, मुनिश्री के हाथ में पिच्छी मौजूद है और वे हाथ जोड़े हुए हैं। प्रतिमा के शीर्ष पर अरिहंत भगवान की प्रतिमा मौजूद है, इसलिए इस प्रतिमा की भी स्थापना यहां दिखाई देती है। प्रतिमा पर संवत 1244 चैत्रवदी लिखा हुआ है, यानी यह प्रतिमा करीब 833 वर्ष पुरानी है।

 

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