आज आदमी विज्ञान को मानता है, वीतराग विज्ञान को नहीं मानता


जब तक जीव सत्य को नहीं जानता तब तक वह असत्य को ही सत्य मानता है। आज आदमी विज्ञान को तो मानता है लेकिन वीतराग विज्ञान को नहीं मानता। जिस दिन आदमी वीतराग विज्ञान को मानने, समझने लगेगा उस दिन उसे सत्य, असत्य का फर्क समझ में आ जाएगा।

यह उद्गार आज मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज ने आवासा रेसीडेंसी एबी रोड स्थित दिगंबर जैन पार्श्वनाथ चैत्यालय परिसर में प्रवचन देते हुए व्यक्त किए। मुनि श्री ने आगे कहा कि वीतराग विज्ञान के अनुसार पूर्व कृत कर्म सबके अपने-अपने हैं और उनके उदय में आने पर उसका फल, (सुख दुख) जीव को भोगना ही पड़ता है। क्रोध, मान, माया और लोभ यह चार कषाय और पूर्वापारजित कर्मों के कारण आज मानव अशांत और दुखी है। मन में कपट, वक्रता और वचन में कुटिलता होने पर कर्मों का आश्रव (बंध) होता है इसलिए कषाय उदय में ना आए इसके लिए जीव को प्रयासरत रहना चाहिए।

अंत में मुनि श्री ने कहा कि सुखी जीवन जीने के लिए सत्य का पालन करते हुए अपने दैनिक जीवन और व्यवहार की
क्रियाएं खान,पान शयन, उठना बैठना बोलना आदि सभी क्रियाएं किस समय कब क्या कहां करना बोलना अर्थात समय सूचकता के साथ करें जीवन सुखी हो जाएगा। धर्म सभा में अमित जैन बीडीवाले, डॉक्टर जैनेंद्र जैन ,आनंद जैन आदि उपस्थित थे सभा का संचालन श्री अनिल जैन ने किया।

— राजेश जैन दद्दू


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