जितने में गुजारा हो, उतने में ही संतुष्ट रहना चाहिए: आचार्यश्री विद्यासागर


इन्दौर। आचार्य श्री  विद्यासागर जी  महाराज ने शुक्रवार को रेवती रेंज स्थित प्रतिभा स्थली में प्रवचन में कहा- सबसे बड़े अवगाहन वाला यदि कोई जीव है तो एक हजार योजन वाला वह मच्छ है। वह जब कभी भी समुद्र में निद्रा में रहता है तब उसका मुंह खुला रहता है और उसमें हजारों छोटी-बड़ी मछलियां आती रहती हैं। इस दृश्य को उसके कान में बैठी तंदूर मच्छ देखती है वह सोचती है कि कितना पागल है ये कि इसके मुंह में से हजारों मछलियां आ-जा रही हैं ओर यह खा नहीं रहा। यदि मैं इसके स्थान पर होती तो एक मछली को भी नहीं छोड़ती। वह एक मछली को भी पकड़ नहीं सकती, लेकिन उसने अपने भावों द्वारा काम तमाम कर लिया।

उन्होंने आगे कहा- अब बताओ कौन-कौन व्यक्ति चक्रवर्ती बनना चाहता है? सब अपना हाथ उठा दिए हो, लेकिन क्षमता तो किसी में नहीं है। आपके हाल भी तंदूर मच्छ की तरह हैं। मिला नहीं तब तक तो ठीक है, लेकिन मिल जाए तो और आ जाए ऐसा सोचते रहते हो। पेट भरा हो, फिर भी और नाश्ते का सोचते हो, इसलिए जितने में गुजारा हो उतने में ही संतुष्ट रहना चाहिए।

 

— अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी


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