आलोकिक समागम: आचार्यश्री विद्यासागर से मुनिश्री प्रमाण सागर जी का भव्य मिलन


नेमावर। आज सम्पूर्ण विश्व की नज़र जिस क्षेत्र पर थी वह थी नेमावर सिद्ध क्षेत्र मध्यान की वह बेला एक नया पर्याय बनकर हम सबके बीच परिलक्षित हो गयी, जब प्रमाण विराट का अपने गुरु आचार्य श्री विधासागर जी से महामिलन हुआ।  हर एक टक उन दर्श्यो का साक्षी बनना चाहता हो। वह द्रश्य अलोकिक था जब मुनि श्री प्रमाण सागर जी विराट सागर जी महाराज गुरुवर को नमोस्तु करते हुये चरण वंदना कर रहे थे और चरणों का पद प्रक्षालन कर रहे थे, मानो वह कह रहे हो मेरे भगवन मेरे गुरु के दर्श आज हो गये हो। शिष्यो का गुरु के प्रति अनुराग का भाव श्रद्धा का भाव परिलक्षित हुआ। जो एक जीवंत उदाहरण प्रस्तुत हुआ है गुरुकुल की परंपरा भी ऐसी होती थी।

 आज मे कुछ कहने की स्थिति मे नहीं बस यही कहुगा जय जय गुरुदेव प्रमाण सागर जी महाराज

इस अवसर पर मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज ने कहा आज मे कुछ कहने की स्थिति मे नहीं, बस यही कहुगा जय जय गुरुदेव उन्होने कहा आचार्य गुरुवर आपको दीक्षा लिये 52 वर्ष व्यतीत हो गये मोक्ष मार्ग पर चलते हुये आप जैन धर्म की एक एक पर्याय बन चुके है। आज का यह पावन दिन मुझे 15 वर्ष 8 माह 22 दिन बाद मिला। वही मुनि श्री विराट सागर जी महाराज को यह अवसर 9 वर्ष 8 माह 22 दिन बाद मिला उन्होने कहा गुरुवर तो साक्षात तीर्थंकर की प्रतिमूर्ति है उन्होने कहा गुरुवर की द्रष्टि आशीष जिस पर हो जाती है। उन्होने कहा किसी एक सज्जन ने गुरुदेव से कहा की उंनके पाव मे छाले है और खून आ रहा है तो गुरुदेव ने कहा सब ठीक होगा आशीष दी। मुनि श्री ने कहा खून तो आ रहा था पर दर्द गायब हो गया साथ ही उन्होने कहा गुरुदेव की संस्क्रती और मानवता पर विशेष क्रपा है। मानवता और जन जन का कल्याण कर रहे है। जब बार बार वह जय जय गुरुदेव का उच्चारण कर रहे थे सारा मंच जय जय गुरुदेव से गुंजायमान था।

सहयोग का मूल मंत्र अंतिम सांस तक बना रहे विराट सागर जी महाराज

गुरु के भाव भीना भजन मंत्रमुग्ध कर गया। मुनि श्री विराट सागर जी महाराज ने कहा वह दिन वर्ष 2009 का जब आचार्य गुरूवर ने कहा था। जब प्रमाण सागर जी के पास भेजा था तब कहा था की बड़े भाई का सहयोग करना यह मूलमंत्र प्रदान किया था। यह सहयोग मैने बनाया रखा उन्होने कहा गुरुदेव यह आशीष दे की यह सहयोग की भावना अंतिम सास तक बनी रहे वही उन्होने एक मार्मिक गीत प्रस्तुत किया जो मंत्रमुग्ध कर गया। उन्होने कहा

गुरु की छाया मे शरण जो पा गया उसके जीवन मे सुमंगल आ गया

गुरु क्र्पा सबसे बड़ा उपहार है गुरु ही अपने देवता श्री भगवान है 

हमको क्या उनको हमारा ध्यान है भव उद्धार है बेड़ा पार है गुरु की छाया मे शरण जो पा गया उसके जीवन मे सुमंगल आ गया।

 

               — अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

 


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